प्रमोद दत्त.
समाजवादियों के टूटने-जुड़ने की एक और पटकथा बिहार में लिखी गई.17 वर्षों तक एनडीए में रहनेवाले नीतीश कुमार,लालू प्रसाद के साथ तीन वर्षों का सफर भी नहीं तय कर पाए.नीतीश कुमार भाजपा के साथ सरकार बनाऐंगें कि नहीं,अभी तय नहीं हुआ है लेकिन लालू प्रसाद ने अपने तेवर से बता दिया कि वे हमलावर विपक्ष के रूप में सरकार को परेशान करते रहेंगें.
इस्तीफा के बाद पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस में लालू प्रसाद का आक्रोश 27 की रैली को आक्रामक बनाने के लिए ही है.जिस भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार की बलि दी गई और तेजस्वी के बहाने लालू को घेरे में लिया गया उसी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नीतीश कुमार को घेरा जाएगा.अगर फिर से नीतीश के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी तो लालू प्रसाद फिर माई समीकरण को मजबूत करने में जुट जाऐंगे.कांग्रेस की मजबूरी राजद से दोस्ती बनाए रखने की होगी.
राजद अब तेजस्वी को प्रोजक्ट कर राजनीति करेगी.यह इसलिए तय माना जा रहा है कि तेजस्वी प्रकरण पर महागठबंधन टूटा.इसे भाजपा की साजिश बताकर अल्पसंख्यकों सहित अपने वोट को बांधे रखने की कोशिश की जाएगी.नीतीश के इस्तीफे के कारण भले ही महागठबंधन की सरकार चली गई लेकिन जो राजद का जनाधार घटता जा रहा था उसे बचाए रखने का आधार जरूर मिल गया.बहरहाल,बिहार की राजनीति ने जो करवट ली है इससे एक बार फिर बिहार में भ्रष्टाचार बनाम सांप्रदायिकता अर्थात लालू बनाम नीतीश की लड़ाई चलेगी.