मुकेशश्री.
ज्योतिष विद्या को रहस्मय विद्या भी माना गया है, इससे कई वैसी सारी जानकारियां मिलती हैं जो किसी अन्य शास्त्र या विधाओं से नहीं मिल सकती है. आज हम जानने की कोशिश करते हैं कि किस किस तरह की कुंडली वाले जातको को ईश्वर कृपा प्राप्त होती है. इसकी जानकारी प्राप्त की जा सकती जन्म कुंडली में बने योगों से.जी हां कुडली में कुछ ऐसे योग होते है जिनसे किसी जातक पर दैविक कृपा के बारे में अंदाज लगाया जा सकता है.यह.भी देखा गया है कि इस दैव कृपा का प्रभाव सभी द्वादश भावों पर पड़ता है.शारीरिक स्वस्थता,धन प्राप्ति, प्रेम और धर्म का आचरण ,सुखी जीवन, आज्ञापालक पुत्र ,निरोगता, सति साध्वी पत्नी ,तीर्थ स्थान पर देह त्याग ,धार्मिक अनुकूलता ,पुण्यकर्म जैसे प्रभावों का आकलन देवकृपा के उपलब्ध योगों के आधार पर किया जा सकता है.ऐसे कुछ महत्वपूर्ण योग इस प्रकार हैं
शुभ ग्रह से दृष्ट अगर दसमेश बुद्ध हो या नवमेश उच्चस्थ हो और उस पर शुभ ग्रह यानी बलि चन्द्र, बुद्ध, गुरु ,शुक्र की युति हो या दृष्टि हो.
लग्न या लग्नेश पर नवमेश का पूर्ण प्रभाव हो.
यदि भाग्येश गुरु के साथ हो और षड्बल में बलि हो या लग्नेश या लग्न पर गुरु का पूर्ण प्रभाव हो.
नवमेश सिंह के नवमांश में हो और उस पर लग्नेश या दसमेश की दृष्टि हो तो जातक पर पर देवताओं की कृपा आजीवन बनी रहती है.इससे परे भी कुछ और योग होते हैं जो देवकृपा को बताते हैं मसलन
दसमेश जब केंद्र स्थानों में हो और नवमेश चतुर्थ भाव में हो तो जातक पर प्रभु कृपा बनी रहती है.शुभ ग्रह से दृष्ट उच्च का लग्नेश भी भगवान की कृपा देता है .
उच्च के गुरु से दृष्ट धनेश भी अगर उच्च का हो तब भी दैवकृपा की स्थिति बनती है.
धनेश उच्च का हो या नमव पंचम या एकादश भाव में हो और बलि लग्नेश के साथ हो और धनेश जिस राशि में हो उसका स्वामी केंद्र स्थान में हो तो जातक को भगवन की कृपा प्राप्त होती है.
पंचम भाव पर सूर्य या गुरु या मंगल का प्रभाव भी ईश्वर कृपा देता है.
यदि पंचम भाव में सम राशि हो और शुक्र या चन्द्र के प्रभाव में हो तो भी जातक पर भगवान की कृपा का होना माना जाता है.
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