महिलाओं को मिले उचित सम्मान

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डॉ नीतू नवगीत.

विश्वभर में महिलाओं को जीवन के हर क्षेत्र में बराबरी का दर्जा और वांछित सम्मान प्रदान करने के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है । यह आयोजन दुनिया के 150 से अधिक देशों में होता है और संयुक्त राष्ट्र संघ भी बढ़-चढ़कर महिला दिवस से संबंधित कार्यक्रमों का आयोजन करता है ।

भारतीय संस्कृति में माना गया है कि यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तंत्र देवता । यानी जहां पर नारी की पूजा होती है वहीं पर देवताओं का वास होता है । अपने देश में नारी को दुर्गा, लक्ष्मी सरस्वती, सावित्री, अहिल्या, अनुसूया और सीता जैसे देवियों के रुप में पूजा जाता है । बावजूद इसके समाज में नारियों को हेय दृष्टि से देखने वाले लोगों की भी कमी नहीं है । समाज का एक बड़ा तबका नारियों को बोझ समझता है ।जन्म के साथ ही बेटियों को भार मान लिया जाता है और उनकी शादी होने तक माता-पिता ऐसा व्यवहार करते हैं मानो कि वह एक बहुत बड़ा बोझ ढो रहे हैं। जिस उदर से बेटों का जन्म होता है, उसी उदर से बेटियों का भी जन्म होता है । लेकिन पूर्वाग्रह से ग्रसित जनमानस बेटे और बेटी के बीच भेद करने लगता है जिससे बेटियों के मन में विलगाव का भाव आता है । उन्हें लगता है कि अपने मां-बाप का घर भी उनका अपना नहीं है । भारत की कुल आबादी मे अभी 48.5 प्रतिशत भाग महिलाओं का है । लेकिन कुल आबादी में महिलाओं का प्रतिशत लगातार गिरता जा रहा है । स्वास्थ्य , शिक्षा, रोजगार के अवसर और पोषण में महिलाओं को दोयम दर्जा दिया जा रहा है । जन्म से लेकर बड़े होने और मृत्यु तक महिलाओं के खिलाफ हिंसा होना सामान्य बात हो गई है । कभी कुल की प्रतिष्ठा के नाम पर, कभी जाति के नाम पर तो कभी समाज की दुहाई देकर लड़कियों के आगे बढ़ने के रास्तों को रोका जाता है ।

शादी होने तक लड़की के मां-बाप उसे पराया धन मानते हुए उसकी रक्षा करने का ढोंग रचते हैं ।इस ढोंग के कारण लड़कियों का आत्मविश्वास तार-तार हो जाता है । परंतु इससे किसी को कोई मतलब नहीं है । सभी को लगता है कि पराया धन मानते हुए लड़कियों की परवरिश ही सही परवरिश है । ऐसी सोच सिर्फ कम पढ़े लिखे लोगों के बीच देखी जाती है, ऐसा नहीं है । खूब पढ़े-लिखे लोग भी इसी प्रकार की घटिया सोच के साथ अपनी बच्चियों की परवरिश करते हैं । ऐसे में भारतीय संविधान में किए गए तमाम तरह की व्यवस्थाएं महज कागजों की शोभा बढ़ाने का काम करती प्रतीत होती है । इससे महिला अधिकारों की रक्षा और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने का स्वप्न महज स्वप्न ही बना रह गया । संविधान के अनुच्छेद 15 में लिंग के आधार पर भेदभाव को वर्जित किया गया है जबकि अनुच्छेद 16 में सभी को अवसरों की समानता प्रदान की गई है । लेकिन हम सभी जानते हैं कि व्यवहार में इसे लागू नहीं किया जा सका है । सरकारी नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी 20% से भी कम है । निजी क्षेत्र में तो यह भागीदारी 10% के आस-पास ही है । रक्षा और अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में तो दशकों तक महिलाओं पर रोक लगाए रखा गया । अब यह रोक समाप्त किया गया है परंतु  अभी भी  महिलाओं की भर्ती का प्रतिशत सेना और पुलिस में काफी कम है । यही स्थिति विज्ञान और उच्च शिक्षण संस्थानों में भी है । वैसे महिलाओं ने अपनी काबिलियत हमेशा साबित की है लेकिन पुरुषों के मन में महिलाओं के प्रति दुराग्रह समाप्त नहीं हो पाया है ।  इस वर्ष भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने एक साथ 104 सैटेलाइट को अंतरिक्ष में स्थापित करने का विश्व कीर्तिमान स्थापित किया जिसमें इसरो की महिला वैज्ञानिकों का भी अभूतपूर्व योगदान रहा । उनके योगदान को सराहा भी गया । लेकिन ऐसी कोई कार्य योजना नहीं बनाई गई जिससे कि देश के सभी लब्धप्रतिष्ठित अनुसंधान संस्थान और विश्वविद्यालयों में महिला कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि हो सके ।

खेलकूद और दूसरे के क्षेत्र में भी भारतीय महिलाओं के परचम लहरा रहे हैं । सानिया मिर्जा, पीवी सिंधु ,  सायना नेहवाल , साक्षी मलिक, साक्षी रावत ,.एमसी मैरीकॉम, अरुणिमा सिन्हा , दीपा करमाकर सहित सैकड़ों महिलाएं रैकेट  गेम के साथ-साथ मुक्केबाजी , जिमनास्टिक, कुश्ती और पर्वतारोहण जैसे श्रमसाध्य एवं चुनौतीपूर्ण खेलों में विश्व स्तर पर सफलता के झंडे गाड़े हैं । रियो ओलंपिक में महिला खिलाड़ियों के बल पर ही देश का राष्ट्रगान विजय की करतल ध्वनि के साथ बज पाया ।  फिर भी सरकारी स्तर पर महिला खिलाड़ियों को कम सुविधाएं  मिलती हैं । महिला टूर्नामेंटों के विजेताओं को कम धनराशि मुहैया कराई जाती है । इस प्रकार के भेदभाव से महिलाओं का हौसला टूटता है ।

21वीं सदी के भी 16 महत्वपूर्ण साल बीत चुके हैं पर महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव और उपेक्षा से संबंधित सवाल अभी भी नाग के फन के समान फुफकारें मार रहे हैं । इन सवालों से रूबरू होना और उनके समाधान की दिशा में सही चिंतन महिला दिवस के आयोजन का मुख्य ध्येय होना चाहिए ।

 

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