निशिकांत सिंह.पटना.बिहार प्रदेश जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के उपाध्यक्ष व पूर्व विधायक सतीश कुमार ने आज कुर्मी चेतना महारैली 1994 के 24वें यादगार दिवस की पूर्व संध्या पर पटना के होटल पाटलिपुत्र एग्जॉटिका में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में नीतीश कुमार पर कुर्मी समाज के अनदेखी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में 1994 में आयोजित कुर्मी चेतना महारैली में जो लक्ष्य निर्धारित किए गए थे, उससे नीतीश कुमार भटक गए। जबकि नीतीश कुमार इसी महारैली के नींव पर सियासी महल में आज तक विराजमान हैं।
श्री कुमार ने कहा कि जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चाटुकारों से घिरे हुए हैं, जो दल के लिए खतरनाक है। उत्तर प्रदेश में रहे विधान सभा चुनाव का जिक्र करते हुए श्री कुमार ने कहा कि यूपी चुनाव में जदयू ने अपने प्रत्याशी नहीं उतार कर भविष्य में नेता के तौर पर नीतीश कुमार की संभावनाओं खारिज कर दिया। इसके लिए बिना जनाधार वाले पार्टी के प्रधान महासचिव व राष्ट्रीय महासचिव जिम्मेदार हैं, जिनकी सलाह से यूपी चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया गया। जबकि नीतीश कुमार ने जब यूपी में जन सभा की थी, तब बड़ी संख्या में लोग उनकी रैली में आए थे। इतना तो तय कि नरेंद्र मोदी कभी गरीबों के नेता नहीं हो सकते।
नोट बंदी के मुद्दे पर श्री कुमार ने नीतीश कुमार पर विपक्ष के साथ विश्वासघात करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि वे आज कह रहे हैं कि विपक्ष को एकजुट हो जाना चाहिए। मगर नोट बंदी के मुद्दे पर अलग – अलग रूख अख्तियार करने से महागठबंधन के कार्यकर्ताओं में सामंजस्य का अभाव हुआ, वहीं महागठबंधन में अग्रणी भूमिका निभा रही जनता दल यूनाइटेड को नोटबंदी के समर्थन के बाद केंद्र से बजटीय प्रावधान में कुछ नहीं मिला। जो यह साबित करता है कि जदयू का नोटबंदी पर स्टैंड हास्यास्पद और महागठबंधन धर्म के विरूद्ध था। उन्होंने कहा कि अब सामाजिक न्याय के नाम पर समाज को बंटने से हमें रोकना होगा।
श्री कुमार ने कहा कि शासन-प्रशासन द्वारा नीतीश कुमार के नेतृत्व में सुशासन, न्याय के साथ विकास एवं समावेशी विकास का सबसे ज्यादा खामियाजा पिछड़े एवं अति पिछड़े कुर्मी बसवाटों और सत्ता प्राप्ति के लिए संघर्षशील निस्वार्थ कुर्मी कार्यकर्ताओं को भुगतना पड़ा। उन्होंने अपने 12 साल के शासन में आज तक नालंदा जिले के दर्जनों कुर्मी बाहुल्य गांव में संपर्क पथ नहीं है। इसके अलावा अररिया, सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, शिवहर के अति कुर्मी बसावटों के लिए अच्छी सड़कों, स्वास्थ्य और शिक्षा के स्तर पर सुविधाहीन है। इतना ही नहीं विधान सभा में कुर्मी सदस्यों की संख्या भी कम गई है।
उन्होंने कहा कि मोटे तौर पर नीतीश कुमार एंव उनके रणनीतिकार जातिवाद के दाग से बचते हुए कुर्मी बसावटों और कुर्मी कार्यकर्ताओं को उपेक्षा का शिकार बना दिया, जो सही मायने में कुर्मी चेतना महारैली 1994 का लक्ष्य से सर्वथा विपरीत है। इसलिए अब वक्त आ गया कि कुर्मी वंशज फिर से नए बिहार और नए सामाजिक संवर्ग एवं सत्ता की प्राप्ति के लिए नया आगाज करें। इसके लिए हम 25 फरवरी 2017 को संत रविवदास जयंती के शुभ अवसर पर एक सम्मेलन कर कुर्मी समाज के लोगों से विमर्श करेंगे। फिर मार्च के प्रथम सप्ताह में राज्य भर कुर्मी समाज के लोगों के साथ मंत्रणा करेंगे।
संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए समाज सेवी अनिल कुमार ने कहा कि सरकार में सुशासन न्याय के साथ विकास तथा समावेशी सर्वांगीन विकास के प्रति प्रतिबद्धता में नित्य प्रति कमी नजर आ रही है। राज्य की वित्तीय अराजकता के वजह से सामाजिक और सांस्कृतिक सद्भाव के सूत्र टूटते नजर आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि ये काफी दुर्भग्यपूर्ण है कि पार्टी के प्रति सतीश कुमार जैसे संमर्पित कार्यकर्ताओं को अनदेखी कर चुपचाप बैठने को कहा जा रहा है। वहीं, संवाददाता सम्मेलन में अरूण कुमार सिन्हा, सत्यप्रकाश नारायण, शिव कुमार, रूपेश कुमार, राम प्रसाद, रंजीत कुशवाहा, नरेंद्र मोहन उर्फ पप्पू और नीरज सिंह बबलू भी मौजूद रहे।