प्रमोद दत्त.
पटना में गुरूगोविंद सिंह के 350वें प्रकाशोत्सव के भव्य आयोजन ने देश-विदेश के सिखों का दिल जीत लिया.आम हो या खास- सबने एक स्वर में इसकी तैयारी की तारीफ की. पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने तो यहां तक कह दिया कि शायद वो भी ऐसी तैयारी नहीं कर पाते.जाते-जाते उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पीठ यह कहकर थपथपा दी कि इसके लिए सिख समुदाय उनका सदा ऋणी रहेगा.
पंजाब के मुख्यमंत्री से लेकर विभिन्न गुरूद्वारा प्रबंध कमिटियों के प्रमुख,जत्थेदार और देश-विदेश से आए श्रद्धालुओं तक-सभी ने नीतीश कुमार और बिहार खासकर पटनावासियों की जमकर तारीफ की.पटना पधारे सिखों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व पटनावासियों को बेहतरीन मेजबानी का सर्टिफिकेट दे दिया.सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या 32 वर्षों बाद ही सही-1984 सिख-दंगे के लगे कलंक को पटना ने धो दिया ?
प्रकाशोत्सव के दौरान तीन-चार दिनों तक पटना की सड़कों पर-पटना साहिब की गलियों में सिख परिवारों के चेहरे पर जो खुशियां मैने देखी-अचानक 1984 दंगे के दृश्य मेरे सामने फ्लैशबैक के समान घुमने लगा.वह खौफजदा सिख परिवार,अपनी जान बचाने की चिंता से डरे-सहमे सिख परिवार,अपनी दूकानों को लुटते देखते सिख व्यापारी, औने-पौने भाव में अपनी संपत्ति बेचकर पलायन को तैयार सिख,जान बचाने के लिए धर्म से समझौता कर दाढी-बाल कटवाते सिख युवा.32 वर्षों बाद प्रकाशोत्सव के बहाने आए बड़े बदलाव से सुकुन का अहसास हुआ.
इंदिरा गांधी की हत्या की खबरें फ्लैश होने के बाद 31 अक्तूबर 84 को दोपहर बाद से पटना के फ्रेजर रोड-स्टेशन रोड से लेकर पटना सिटी की तंग गलियों तक जो कुछ हुआ- वह पटना के माथे पर न मिटनेवाला कलंक बन गया.लगभग सप्ताह-दस दिनों तक लूटपाट व डराने-धमकाने का दौर चलता रहा.खौफजदा सिख परिवारों की पहली चिंता जान बचाने की बन गई थी.तब केन्द्र के साथ-साथ बिहार में भी कांग्रेस की सरकार थी.शुरूआत युवा कांग्रेसियों के आक्रोश-जुलूस से हुई लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर सिंह की शांति-यात्रा के बाद भी माहौल पूरी तरह नहीं बदला.कई सिखों के दूकान-व्यापार लूट गए तो कई व्यापार समेटकर पलायन कर गए.वही सिख रह गए जो अपनी पवित्र भूमि पटना साहिब से मोह नहीं तोड़ पाए.डरे सहमे ही सही-इसी धरती पर से उन्होंने नई पूंजी से अपनी जिन्दगी की दूसरी पारी की शुरूआत की.
इस दंगे के बाद कई सरकारें आई और चली गई.वर्षों तक मुआवजा को लेकर सभी सिख व्यापारियों को सरकार संतुष्ट नहीं कर पाई.आज भी कुछ सिख परिवार ऐसे हैं जो दंगे के दर्द को भुला नहीं पाए हैं.दंगे के समय जो किशोरावस्था में थे आज प्रौढावस्था में फ्रेजर रोड गुरूद्वारा में सेवा देकर किसी तरह परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं.जबकि उनके पिता का कोल्ड स्टोरेज था जो दंगे की भेंट चढ गया.मुआवजा को लेकर जो शर्तें (एफआईआर) बनाई गई,उसके कारण कई वंचित रह गए.किसी ने डर से तो कोई पलायन किया-जिससे बहुतों ने प्राथमिकी दर्ज नहीं की.
कांग्रेस-सरकार के माथे पर 84 सिख दंगे के बाद भागलपुर दंगे (1989) का कलंक लगा.लालू-सरकार के समय भागलपुर दंगे पर आयोग गठित हुआ.आयोग की रिपोर्ट पर विवाद हुआ.न्याय नहीं मिल पाने की आशंका पर नीतीश-सरकार ने भागलपुर दंगे पर नए सिरे से जांच करवाई.जांच के आधार पर दंगा प्रभावितों को वर्षों बाद सहयोग भी दिया गया.विपरीत राजनीतिक परिस्थितियों में नीतीश कुमार ने यह तब किया जब वे भाजपा (एनडीए) के साथ मिलकर सरकार चला रहे थे.अब नीतीश कुमार, कांग्रेस (महागठबंधन) के साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं.उन्होंने कांग्रेसी सरकार के दूसरे कलंक(84 दंगा) को भी धोने का प्रयास किया है.इसमें उन्हें केन्द्र सरकार,पंजाब सरकार,अधिकारी-कर्मचारियों के साथ साथ पटनावासियों का भरपूर सहयोग मिला.पटना की पवित्र भूमि पर लगे 84 दंगे के कलंक धुले या नहीं-यह तो भुक्तभोगी सिख परिवार ही बता सकते हैं लेकिन यह उम्मीद जरूर की जा रही है कि प्रकाशोत्सव के प्रकाश ने पटनावासियों को भाईचारे की नई राह दिखा दी.