जानें…झारखंड के आदिवासी बाहुल दामूडीह की बेमिसाल कहानी

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हिमांशु शेखर.रांची. झारखंड के पूर्वी सिंहभूम के पोटका प्रखंड का दामूडीह गांव जनजाति बाहुल गांव है, बावजूद वहां शराब पीने वाले को न केवल हेय दृष्टि से देखा जाता है बल्कि ऐसा करने वाले वाले को ग्रामसभा की ओर से दंडित भी किया जाता है।

गांव के लाया (ग्राम्य पुजारी) रघुनाथ सरदार बताते हैं कि पारम्परिक जनजातीय त्योहारों के अवसर पर हंड़िया (विशेष प्रकार की स्वनिर्मित मादक पेय) का प्रयोग तो किया जाता है लेकिन उतनी ही मात्रा में जितनी कि पूजा में प्रसाद के लिए जरुरी होता है। त्योहारों के अलावा उनके मौजा की सीमान्तर्गत शराब बनाने वाले और पीने वालों पर पकडे़ जाने पर क्रमशः दस हजार व पांच हजार का सार्वजनिक अर्थदंड लगाया जाता है।अर्थदंड की राशि गांव के विकास में खर्च की जाती है। शराब व अन्य नशीली वस्तुओं के सेवन के खिलाफ बने माहौल को देखते हुए इस गांव को सभी प्रकार के नशा से मुक्त करने की कवायद तेज कर दी गयी है।

इस सिलसिले में मुख्यमंत्री कैम्प कार्यालय के उपसमाहर्ता संजय कुमार ने दामूडीह गांव पहुंच कर ग्राम प्रधान ठाकुर मांझी के नेतृत्व में आयोजित ग्राम सभा में गांव के ग्रामीणों के बीच उन्ही के सहयोग से गांव को पूर्ण नशामुक्त बनाने की पेशकश की।गांव के प्रधान व गांव के पारंपरिक पुजारी सहित सभी लोगों ने इस पेशकश पर अपनी मुहर लगा दी। ग्राम प्रधान ने ग्रामीणों को नशा नहीं करने और गांव को नशा से मुक्ति का संकल्प भी दिलाया।खास बात यह है कि दामूडीह गांव में शराब पर पहले से ही सामाजिक प्रतिबन्ध है। लेकिन सरकार के सहयोग से इस गांव में शीघ्र ही सभी प्रकार के नशा- खैनी, सिगरेट, गुटखा आदि के सेवन के खिलाफ सामूहिक अभियान चलाया जाएगा। यहां यह उल्लेखनीय यह है कि वर्ष 2011 की जनगणना के लिहाज से दामूडीह में 113 परिवार रहते हैं।आबादी सिर्फ 571 है,जिसमे से417  लोग संताल और भूमिज जनजाति समुदाय के हैं। साक्षरता दर 69 प्रतिशत है। कई लोग अच्छे पदों पर कार्य रहे हैं।

इस गांव की आपसी सदभावना भी बेमिसाल है। किसी एक व्यक्ति के सुख दुख में गांव के सभी लोग एकजुट हो जाते हैं। गांव के अतीत के पन्ने को पलटें तो करीब तीन दशक पहले गांव के प्रतिष्ठत दिवंगत दखिन टुडू ने शराब विरोधी अभियान को दामूडीह में दिशा दी थी। यह अभियान आज भी चल रहा है। गांव के ही रातू मुर्मू तथा जीतराय मुर्मू ने उपसमाहर्ता को बताया कि यहां 80 के दशक से कोई आपराधिक मामला भी दर्ज नहीं हुआ है। यहाँ तक कि गांव के किसी व्यक्ति के विरुद्ध एफआईआर तक नहीं है। पोटका के थाना प्रभारी  अरविन्द प्रसाद यादव बताते हैं कि वास्तव में इस गांव में लंबे समय से किसी अपराध की घटना थाने में दर्ज नहीं हुई है। खेलकूद की चर्चा करें तो नशे की लत से दूर रहने के कारण  गांव के लोगों का स्वास्थ्य काफी अच्छा है। नतीजा यह है कि यहाँ के युवक खेल जगत में भी सफलता की नयी कहानी लिख रहे हैं। इसी गांव के रहने वाले बादल हेम्ब्रम व लखन हांसदा राष्ट्रीय स्तर के साइकिलिस्ट हैं। बाबूलाल हांसदा राज्यस्तरीय फुटबॉलर हैं।सेंट्रल स्कूल में अध्ययनरत इस गांव के छात्र रविंद्रनाथ मुर्मू ने राष्ट्रीय गणित ओलंपियाड तथा विज्ञान ओलंपियाड में अव्वल स्थान हासिल किया था। परमाणु ऊर्जा विभाग से सेवानिवृत्त हुए ठाकुर मांझी गांव के युवाओं की सफलता का राज शराब का सेवन नहीं करने को देते हैं।

 

 

 

 

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