दिसम्बर तक कैशलेस झारखंड बनाना सरकार के सामने चुनौती

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हिमांशु शेखर.रांची. नोटबंदी के बाद भ्रष्टाचार व कालाधन के दुष्प्रभाव से निबटने के लिए  झारखंड सरकार भी केन्द्र के साथ कदमताल करते हुए झारखंड को कैशलेस बनाने की मुहिम में जोरशोर से जुट गयी है. लेकिन झारखंड जैसे राज्य में जहां लोगों के पास मोबाइल फोन तो है लेकिन अधिकतर आबादी स्मार्टफोन से वंचित हैं. मोबाइल नेटवर्क की समस्या भी अलग. ऐसे में सरकार की इस मुहिम को कितनी सफलता मिलेगी-यह सवाल स्वाभाविक है.

दिसम्बर तक इस राज्य को कैशलैस बनाने का आह्वान मुख्यमंत्री ने किया है.इसकी पूरी तैयारी के बिना  राज्य को कैशलेस बनाने की कवायद बहुत आसान नहीं होगी.एक बड़ी चुनौती के रुप में यह सामने आएगी.प्रेक्षकों का मानना है कि पीएम मोदी के निर्णय में चार कदम आगे बढकर निर्णय लेने वाले रधुवर दास को इस मामले में भी फजीहत झेलनी पड़ सकती है.क्योंकि सीएनटी एक्ट में संशोधन को लेकर पहले से संपूर्ण विपक्ष हमलावार हो चुका है.

जानकारी के अनुसार झारखंड की 33.59 फीसदी आबादी अभी भी निरक्षर है. वे पासवर्ड और स्मार्टफोन की बुनियादी बातों को कितने दिनों में समझ सकेंगे-यह एक बड़ा सवाल है. पढे़-लिखे लोग भी पहले से सायबर अपराध के शिकार हो रहे हैं. ऐसे में अनपढ़ लोगों के खाते पर सायबर अपराधी हमला नहीं करेंगे इस बात की गारंटी कहां से मिलेगी? वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक झारखंड में 66.41 फीसदी आबादी साक्षर है. इसमें 76.84 फीसदी पुरूष और 55.42 फीसदी महिलाएं साक्षर हैं. राज्य में करीब 32600 गांव हैं. इनमें से लगभग एक हजार गांव में बिजली अबतक नहीं पहुंची है. समस्याएं अनेक हैं.  राज्य की ग्रामीण आबादी एटीएम और पेटीएम तक के बारे में नहीं जानती है.

इस बाधा को पार करने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पांच हजार तक मूल्य के स्मार्टफोन खरीददारी को वैटमुक्त करने की घोषणा की है. लेकिन राज्य की एक बड़ी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर कर रही है. स्मार्टफोन खरीदने की उनकी आर्थिक क्षमता नहीं है. हालांकि कई अन्य रियायत भी इस दिशा में सरकार की ओर से लोगों को दी जा सकती है.हर लोगों तक स्मार्ट फोन पहुंचाना और फिर उन्हें कैशलेस बनने के लिए ट्रेनिंग देना एक बड़ी चुनौती  सरकार के सामने है.

 

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