चंदन.पटना.बिहार में महागठबंधन सरकार की मुश्किलें कम नहीं होने का नाम नहीं ले रही हैं। राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार धर्मनिरपेक्षता व सुशासन की जिस पटरी पर जनता दल (यू) की राजनीति को गति देना चाहते हैं, उसे महागठबंधन के साथी राष्ट्रीय जनता दल के समर्थक‘‘माई’ समीकरण पर हमला जैसा मान रहे हैं। पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन के मामले में उच्चतम न्यायालय का पुन: जेल में डालने के फैसला के बाद राजद के शीर्ष नेतृत्व की चुप्पी का राजनीतिक हल्कों में यही मायने निकाले जाने लगे हैं। वैसे भी उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद जिस तरह से सिवान में राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ खुल्लम खुल्ला मुर्दाबाद व लालू प्रसाद जिन्दाबाद के नारों के बीच मोहम्मद शहाबुद्दीन ने ‘‘अगले चुनाव में पता चल जाएगा’ जैसी राजनीतिक धमकी दे डाली है, वह महागठबंधन खास कर जदयू के तमाम शीर्ष नेतृत्व को असहज कर देने के लिए काफी है। हालांकि, महागठबंधन के शीर्ष नेतृत्व के बीच इस ‘‘माई’ समीकरण की बेबसी के आलम का यह कोई पहला मौका नहीं है।लेकिन यह भी तय माने जाने लगा है कि नीतीश कुमार राजद के माई(मुस्लिम-यादव) के निशाने पर आ गए हैं।
राजद गठबंधन से नाता तोड़ने के बाद जदयू, राजद, कांग्रेस महागठबंधन की सरकार को इस बेबसी का सामना तब भी करना पड़ा था जब मोहम्मद शहाबुद्दीन से आशीर्वाद लेने उनके करीबी माने जाने वाले अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री अब्दुल गफूर जेल चले गये थे। तब यह तस्वीर भी सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी। राजनीतिक गलियारों में तब चर्चा थी कि अपनी छवि के प्रति चिंतित नीतीश कुमार ने राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद से किसी और को मंत्री बनाने को कहा था। लेकिन राजद सुप्रीमों इसके लिए कतई तैयार नहीं हुए थे। तब जदयू नेतृत्व ने मीडिया के सामने यह कह कर अपनी झेंप मिटाई थी कि यह राजद का अंदरूनी मामला है। यह बयान स्पष्ट रूप से अपना चेहरा बचाने की कवायद भर थी।राजनीतिक हल्कों में जदयू व राजद के बीच रार की बात तब भी आई थी, जब बोर्ड व निगम को भंग कर एक साथ राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद सभी पदों को महागठबंधन के नेताओं से भरना चाहते थे। तब नीतीश कुमार का मानना था कि जैसे-जैसे टर्म खत्म होता जाएगा, वैसे-वैसे बोर्ड व निगम के पदों को भरते जाएंगे। मगर हुआ वही जो राजद सुप्रीमो चाहते थे। वैसे जब तब राजद के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह भी नीतीश कुमार पर टीका-टिप्पणी करते रहते हैं। लोग मानते हैं कि यह लालू प्रसाद की शह पर भी होता है। अब यह विपक्ष का दबाव कह लें या सुशासन की छवि की जरूरत मगर शहाबुद्दीन प्रकरण पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटा कर महागठबंधन के बीच पनपी खाई को आकार दे डाला। इसका फलाफल सिवान में हुए विरोध प्रदर्शन से भी आंका जा सकता है। लेकिन राजद की इस चुप्पी के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिस सुशासन की लड़ाई को धार देना चाहते हैं वह अभी भी कई सवालों के घेरे में हैं। सवाल उठता है कि शहाबुद्दीन जैसे हिस्ट्री सीटर जेल भेजा गया है, वह अभी भी राजद के राष्ट्रीय कार्यसमिति का सदस्य है.
क्या नीतीश कुमार गठबंधन की छवि को बनाये रखने के लिए शहाबुद्दीन को पार्टी से निलम्बित करने का दबाव बनाएंगे ? सवाल तो यह भी उठने लगा है कि क्या शहाबुद्दीन की ही तरह राजवल्लभ यादव, सुरेन्द्र यादव, बिन्दी यादव, अनंत सिंह, अशोक महतो, मुन्ना शुक्ला, सूरजभान, रामा सिंह सरीखे दागदार नेताओं के खिलाफ जेल भेजवाने की मुहिम चला कर सुशासन सरकार की इस बनती नई छवि का पैरोकार बने रहेंगे ? वर्तमान संकट शहाबुद्दीन को ले कर जो है, इस प्रकरण से उपजी राजनीतिक स्थितियां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सियासी सफर को आसान राह नहीं देने जा रही है। अग्निपरीक्षा के इस घड़ी में नीतीश कुमार फिलवक्त विपक्ष के दबाव में भी है और गठबंधन के साथी राजद के एक विशेष वोट बैंक माई के निशाने पर भी। लेकिन इन परिस्थितियों के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को शहाबुद्दीन प्रकरण की छाया से बाहर निकलना न केवल कठिन चुनौती है, बल्कि देश स्तर पर राजनीतिक लक्ष्य और महत्त्वाकांक्षा को किसी अंजाम तक पहुंचाने की बैचैनी भी। वह भी यह समझते हुए कि महत्त्वाकांक्षा के इस धरातल पर बात बगैर भाजपा यानी धर्मनिरपेक्ष पार्टियों के सिरमौर बने रहने के बाद ही संभव है।