टूटते तारों को बचाने का सफल होता एक प्रयास

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डिम्पी कुमारी सिंह.बरौनी. बरौनी के शोकहारा निवासी पेशे से शिक्षक अजीत कुमार एवं उसकी पत्नी शबनम मधुकर वर्षों से विभिन्न रेलवे प्लेटफार्म पर मुफलिसी की जिंदगी गुजार रहे सैंकड़ों अनाथ, बेसहारा व आश्रयहीन बच्चों के बीच शिक्षा का अलख जगा रहे हैं. उन बच्चों के बीच ज्ञान की असीम शक्ति को पहुँचाने के काम में लगे हैं, जिनकी जिंदगी में शायद कभी शिक्षा व ज्ञान की रोशनी पहुंचने की उम्मीद नहीं थी. ये शिक्षक दंपत्ति सजा रहे है- इन मासूमों की आंखों में सुनहरे कल की सपने ताकि ऐसे बच्चों के गुमराह हो रहे बचपन को बचाया जा सके और संवारा जा सके. इन नौनिहालों के आने वाले कल को बेहतर बनाया जा सके.

प्लेटफार्म पर रहने वाले इन बेसहारा बच्चों की शिक्षा और बाल अधिकार को ले पहले तो इन्होंने कई स्थानीय विद्यालयों के अलावे संबंधित सभी आलाधिकारियों सहित प्रधानमंत्री कार्यालय एवं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक दरवाजा खटखटाया. परंतु इन्हें सफलता नहीं मिली लेकिन अजीत और शबनम ने हार नहीं मानी और स्वयं ही ऐसे बच्चों को शिक्षित और नशामुक्त कर समाज के मुख्य धारा से जोड़ने का निश्चय किया.और शुरू हुआ बेसहारा,बाल-श्रमिक बच्चों का एक अनोखा विद्यालय.

फरवरी 2013 में शिक्षक अजीत, पत्नी शबनम मधुकर एवं मित्र प्रशांत के सहयोग से बरौनी जंक्शन रेलवे प्लेटफार्म के खाली पड़े शेड (टी.पी.टी) में शुरू किया. अनाथ बेसहारा बच्चों का एक अनोखा विद्यालय. सामान्य स्कूलों की तरह अब बच्चे भी रोज स्कूल से पूर्व करते हैं-प्रार्थना-योगा एवं चेतना सत्र और फिर होती है गीत,संगीत,पहेली, मुख अभिनय, चित्र, तालियां और चुटकियों जैसे रोचक गतिविधियों के द्वारा भाषा और गणित की पढ़ाई.

देखते ही देखते दर्जनों बच्चे नशा और बाल अपराध की राह छोड़ पढ़ाई के साथ-साथ विभिन्न खेल-कूद, योगा और चित्रकला में प्रशिक्षित होने लगे. इन बच्चों ने स्थानीय एवं जिला स्तरीय विभिन्न प्रतियोगिताओं में सक्रिय सहभागिता निभाते हुए कई पदक और प्रशस्ति-पत्र प्राप्त कर अपना एक अलग पहचान बनाया. अब इनके मासूम चेहरे पर बेवसी और मायूसी की जगह पढ़-लिख कर कुछ कर गुजरने का आत्मविश्वास स्पष्ट देखा जा सकता है. ये बच्चे भी अब तैयार हैं अपने हौसले की उड़ान भरने को. इन्हें आवश्यकता है बस थोड़ा सहयोग,थोड़ी सहानुभूति की.

अजीत का बचपन अपने पिता सीताराम पेाद्दार के साथ बरौनी रेलवे प्लेटफार्म पर चाय बेचते हुए गुजरा. अपने इरादे के मजबूत और धुन के पक्के अजीत शुरू से पढ़-लिख कर शिक्षक बनना चाहते थे. वर्ष 2003 में जी.डी.कॉलेज,बेगूसराय से स्नातक की पढ़ाई पूरी कर वर्ष 2004 में उत्क्रमित मध्य विद्यालय रेलवे, बरौनी में भाषा एवं गणित शिक्षक के रूप में नियुक्त हुए. अपने संघर्ष के दिनों में इन्होंने रेलवे प्लेटफार्म पर मुफलिसी की जिन्दगी गुजार रहे सैंकड़ों अनाथ, बेसहारा, आश्रयहीन बाल श्रमिक बच्चों की जिन्दगी को काफी करीब से देखा एवं उनके दर्द को महसूस किया. उन्होंने यह करीब से देखा कि पढ़ने-लिखने व खेलने की उम्र में अशिक्षा, भूख, कुपोषण और नशे की गिरफ्त में पड़कर उम्र से पहले ही अपना जीवन और बचपन खो देते हैं. ऐसे गुमराह हो रहे लाखों बच्चों को शिक्षा और समाज के मुख्यधारा से जोड़ने को ही शिक्षक अजीत ने बनाया अपने जीवन का लक्ष्य.

शिक्षक अजीत एवं शबनम कहते हैं, हमारा यह शैक्षणिक एवं नशामुक्ति अभियान न सिर्फ बरौनी जंक्शन के इन 40 बच्चों के लिए है बल्कि उन तमाम अनाथ, बेसहारा, आश्रयहीन बच्चों के लिए है जो बिहार सहित पूरे भारत में लाखों की संख्या में अशिक्षा, भूख, कुपोषण एवं नशे की गिरफ्त में अपना जीवन और बचपन खो रहे हैं, हमें वैसे गुमराह हो रहे बचपन को बचाना है. मंजिलें अभी और भी हैं ये तो बस शुरूआत है, एक नई समाजिक क्रांति की.

 

 

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