संवाददाता.पटना.व्याख्याता से लेकर न्यायिक सेवाओं की नियुक्ति व पोस्ट मैट्रिक छात्रवृति तक में राज्य सरकार दलितों और आदिवासियों की उपेक्षा कर रही है। एक ओर तो मुख्यमंत्री यूपी जाकर न्यायिक सेवाओं में आरक्षण की वकालत करते हैं जबकि दूसरी ओर बिहार में 29 वीं बैच की न्यायिक सेवाओं के लिए आरक्षण कोटि व रिक्तियों का उल्लेख किए बिना विज्ञापन निकाला गया है। वहीं, बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) द्वारा सरकारी प्रशिक्षण महाविद्यालयों में व्याख्याताओं की नियुक्ति के लिए निकाले गए विज्ञापन में एससी और एसटी अभ्यर्थियों को शैक्षिक अहर्ता में मिलने वाली 5 प्रतिशत की छूट से जानबूझ कर वंचित किया गया है।
एक बयान में यह आरोप लगाते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी ने कहा कि बीपीएससी द्वारा सरकारी प्रशिक्षण महाविद्यालयों में व्याख्याताओं के 478 पदों पर नियुक्ति के लिए निकले गए विज्ञापन में शैक्षिक अहर्ता के तौर पर पीजी और एम-एड में 55-55 प्रतिशत अंक की मांग की गई है। यूजीसी की गाइडलाइन के बावजूद एससी और एसटी को निर्धारित शैक्षिक अहर्ता में 5 प्रतिशत की छूट नहीं दी गई है जबकि इसके पहले की नियुक्ति में यह छूट दी गई थी।
उन्होंने कहा कि 28 वीं बैच की न्यायिक सेवाओं की नियुक्ति में पिछड़ों के 23 प्रतिशत आरक्षण से संबंधित मुकदमे पिछले दो साल से सुप्रीम कोर्ट में लम्बित है। राज्य सरकार द्वारा जानबूझ कर मजबूती से मुकदमा नहीं लड़ने, 17 बार डेट पड़ने और सरकारी वकील के 9 बार समय लेने के कारण इसका निपटारा अब तक नहीं हो पाया है। नतीजतन, 29 वीं न्यायिक सेवाओं के लिए आरक्षण कोटि व रिक्तियों का उल्लेख किए बिना विज्ञापन निकाला गया है।
वहीं, पोस्ट मैट्रिक छात्रवृति की अधिकतम सीमा एक लाख से घटा कर मात्र 15 हजार तक सीमित करने की राज्य सरकार के निर्णय के कारण हजारों दलित व आदिवासी छात्रों को बीच में पढ़ाई छोड़ने के लिए विवश होना पड़ रहा है। सरकार पढ़ाई से लेकर नौकरियों तक के अवसरों से दलितों व आदिवासियों को वंचित कर रही है।