सुधीर मधुकर.पटना. बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन का 98वां स्थापना दिवस समारोह भव्य रूप से मनाया जायेगा। आगामी 19-20 अक्टुबर को आहूत इस दो दिवसीय समारोह के उद्घाटन हेतु महामहिम भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी से आग्रह किया गया है। मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थिति हेतु, बिहार के महामहिम राज्यपाल, पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सम्मेलन अध्यक्ष स्वयं भेंट कर आमंत्रित करेंगे। समारोह में देश भर से सैकड़ों विद्वान भाग लेंगे, जिनमें दो दर्जन से अधिक साहित्यकारों को विविध अलंकरणों से विभूषित किया जायेगा। इसमें दो वैचारिक सत्रों के अतिरिक्त भव्य कवि सम्मेलन तथा यादगार संस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किये जायेंगे, जिसमें साहित्य सम्मेलन के विगत 97 वर्षों का महिमामय इतिहास प्रस्तुत किया जायेगा।
यह निर्णय आज सम्मेलन सभागार में आयोजित, सम्मेलन की शीर्ष और स्वामिनी समिति, स्थायी समिति की बैठक में प्रस्ताव पारित कर लिया गया। बैठक के बाद संवाददाताओं से बात करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने यह जानकारी देते हुए बताया कि विगत 37वें महाधिवेशन की व्यापक सफ़लता से उत्साहित सम्मेलन के विद्वान सदस्यों ने सम्मेलन की स्थापना के इस ऐतिहासिक उत्सव को व्यापक रूप से मनाने का निर्णय लिया। सदस्यों की भावना थी कि इस उत्सव को व्यापक महत्त्व मिलना चाहिए। सदस्यों ने इस बात पर भी प्रसन्नता व्यक्त की कि सम्मेलन अध्यक्ष ने श्रम के साथ शोध कर सम्मेलन की स्थापना की तिथि का पता लगाया है, जिसे लोग भूल चुके थे। पूर्व में स्थापना दिवस मनाया भी नही जाता था,जिससे इसका पता सबको होता। विगत वर्ष पहली बार एक सादे समारोह में सम्मेलन का स्थापना दिवस मनाया गया था तथा उसी समय इसे आगे से व्यापक रूप में मनाने का निर्णय लिया गया था।
बैठक में एक अन्य प्रस्ताव पारित कर सम्मेलन की कार्यसमिति के पुनर्गठन हेतु सम्मेलन अध्यक्ष को अधिकृत किया गया। अनेक सदस्यों ने इस बात पर खेद प्रकट किया कि वर्तमान कार्यसमिति में अनेक ऐसे अधिकारी और सदस्य हैं, जो ‘नाम-मात्र के’ हैं और उनका योगदान न के बराबर है। ऐसे व्यक्तियों को दायित्व से मुक्त कर उत्साही और मन से कार्य करने वाले व्यक्तियों को अवसर दिया जाना चाहिए।
बैठक में स्थायी समिति के सदस्य तथा नालंदा मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो रास बिहारी सिंह, सम्मेलन के प्रधानमंत्री आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव, उपाध्यक्ष नृपेन्द्र नाथ गुप्त, डा विजय शंकर सिंह, डा शंकर प्रसाद, पं शिवदत्त मिश्र, डा नागेन्द्र प्रसाद मोहिनी, अधिवक्ता पण्डितजी पाण्डेय, कवि विशुद्धानंद, डा उपेन्द्र राय, राजनाथ मिश्र, डा विनोद शर्मा, कवि आरपी घायल, ई चन्ददीप प्रसाद, कवि राज कुमार प्रेमी, डा राजीव रंजन प्रसाद, प्रो वासुकीनाथ झा, डा लक्ष्मी सिंह, विमल जैन, राम नंदन पासवान, प्रो अरुण कुमार प्रसाद वर्मा, कुमार अनुपम, वेद प्रकाश वेदुआ, ॠषिकेश पाठक, राम पुकार सिंह, हरेराम महतो, राम नंदन पासवान, डा कल्याणी कुसुम सिंह, ई शंभुनाथ सिन्हा, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, श्याम बिहारी प्रभाकर, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, सुनील सिंह छविराज, राम पुकार सिंह, डा दिनेश दिवाकर, बांके बिहारी साव, आर प्रवेश, सुनील सिंह छविराज, अवध बिहारी जिज्ञासु, पं गणेश झा, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, कमलदेव नारायण शुक्ल, कुमारी स्मृति, कृष्ण रंजन सिंह तथा आनंद किशोर मिश्र समेत आदि सदस्यों नें विभिन्न प्रस्तावों पर आयोजित चर्चा में भाग लिया।