विश्वविद्यालय की उपेक्षा का दंश झेलते एक प्राचार्य

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रामानंद सिंह रौशन.सुपौल. जिला मुख्यालय के एक मात्र सत्येन्द्र नारायण सिंह महिला कॉलेज (सुपौल) वर्ष 1979 में स्थापित हुआ. स्थापनाकाल के बाद वर्ष 2000 से 2011 तक प्रो. निखिलेश कुमार सिंह ने अपने कार्यकाल में महाविधालय को शिक्षा के मामले में ही नहीं बल्कि प्रशासनिक दक्षता व भवन निर्माण के अलावे महाविद्यालय के छात्राओं को राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न कार्यक्रमों में सहभागी बनाकर एनसीसी व एनएसएस के क्षेत्रों में 2004-2010 तक राष्ट्रीय सम्मान दिलाने अग्रणी बनाए हुए हैं.लेकिन इनदिनों इसे राजनीति का अखाड़ा बना दिया गया है जिससे कॉलेज की गरिमा के सामने प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है.
प्राचार्य के कुशल नेतृत्व और प्रगतिवादी गतिविधियों से अपने निजी स्वार्थ पर अंकुश लगते देख कॉलेज के तत्कालीन सचिव महाविद्यालय का ताला तोड़वाकर असंवेधानिक तरीके से कब्जा जमा लिया.इसके बाद अपने मन मुताबिक एक अस्थायी कनीय शिक्षक को प्रभारी प्राचार्य बना दिया. उन्हें भय था कॉलेज का सरकारीकरण हो गया तो निजी सम्पति के रूप में इसका इस्तेमाल बंद हो जाएगा.कॉलेजकर्मियों पर वर्चस्वता कायम रहे इसलिए साजिश के तहत इसके सरकारीकरण में अड़ंगा लगाया जा रहा है.

मालूम हो कि इस संदर्भ में एन एन सिंह महिला कॉलेज के पूर्व प्राचार्य निखिलेश कुमार सिंह ने प्रेस को बताया कि  बीएनएमयू मघेपुरा, को पूरी वस्तुस्थिति बताते हुए कहा कि वे विवि का लगातार चक्कर लगाते रहे हैं.विवि. ने अपने ज्ञापांक -GS (प्रो. -85 /11 ) , 351/12 दि. 29 .02. 12 के द्वारा प्राचार्य का प्रभार देने का निदेँश, वि.वि.कुलसचिव ने दिया.इसके बाद दर्जनों  आदेश , निदेँश-पत्र महाविधालय के सचिव , शासी निकाय को मिलता रहा. आदेश पत्र के आलोक में निखिलेश कुमार सिंह ने गत वर्ष 26 .07. 13 को ही प्राचार्य के पद पर महाविधालय व वि.वि. में योगदान भी दिया था. बावजूद वि.विश्वविधालय व शासीनिकाय की उपेक्षा के कारण पदभार से कोसों दूर है.इस संदर्भ में तत्कालीन प्राचार्य श्री सिंह का कहना है कि बिहार सरकार के शिक्षा निदेशक व संयुक्त सचिव ने भी अपने ज्ञापांक – BO/ बी एन एम यू./ बी – र. महा. / 9 /10  , 04 , 04 , 2009 पटना ने उचित प्रभार के लिये निदेँश दिया है. पुनः इस प्रकरण में राज्यपाल सचिवालय, बिहार ने अपने पत्रांक बी एन एम यू .- 01/ 2015  के द्वारा कुलसचिव बीएनएमयू. को निखिलेश कु.सिंह को प्राचार्य का प्रभार दिलाने का आदेश दिया है . परन्तु समस्त आदेश के बावजूद श्री सिंह को प्राचार्य पद पर नही बैठने दिया जा रहा है . साथ ही उन प्रसंगों को कार्य रूप नहीं देने वालों के विरूद्ध विश्वविद्यालय अनुशासनिक कार्यवाही की विधिसम्मत अग्रतर कार्रवाई  भी नहीं कर रही है.ऐसे में श्री सिंह न्याय के लिये अब कहां गुहार लगाऐं उनके सामने यह एक अहम् सवाल सामने खड़ा है.
 

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