स्वर्णा.पटना.संघ को लेकर सियासी तापमान चढने लगा है.मुख्यमंत्री ने संघमुक्त भारत की बात करते हुए कहा कि यह विचारधारा देशहित में नहीं है वे समाज को बांटने का काम कर रहे हैं.इस पर चुनौती देते हुए भाजपा नेता सुशील मोदी ने कहा कि हिम्मत है तो बिहार में संघ पर प्रतिबंध लगाएं नीतीश.
जनता दरवार के बाद सीएम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि हमने भाजपा के खिलाफ विभिन्न राजनीतिक पार्टियों को एकजुट करने की कोशिश की. इससे भाजपा में डर है. आरएसएस का विचारधारा देशहित में नहीं , वह समाज को बाँटने का काम कर रहे . संघमुक्त भारत के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व करने वाले नेता कई है. उन्होंने यह भी कहा कि जब वे भाजपा के साथ भी थे तो कई बिन्दुओं पर मतभेद था.जब वे उन मुद्दों पर अग्रेसिव हुए तो अलग हो गए. शराबबंदी को लेकर दूसरे राज्यों से बुलाहट आयेगा. आवाज बुलंद होगा तो मैं समर्थन करने जाऊंगा.
उन्होने कहा कि अगर सहनी इस्तीफा नहीं देते है तो पार्टी के तरफ से कार्यवाई की जायेगी. उन्होंने भाजपा पर साधा निशाना. कहा इनके यंहा वन वे ट्रैफिक है वे अच्छे कामो का भी शिकायत करते है.
इधर, नीतीश को चुनौती देते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी ने कहा कि हिम्मत है तो बिहार में संघ पर प्रतिबंध लगायें नीतीश.उन्होंने एक बयान में कहा कि जनता ने भूख-प्यास, अपराधियों के भय और भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने के लिए नीतीश कुमार को जनादेश दिया, लेकिन इन सारे मुद्दों पर अपनी विफलता से ध्यान हटाने के लिए उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) जैसे देशभक्त संगठन से मुक्ति दिलाने का शिगूफा छेड़ दिया है. वे संध पर प्रतिबंध लगाने की भूमिका बना रहे हैं. कांग्रेस भी संघ पर रोक लगाकर इसका परिणाम देख चुकी है. अगर हिम्मत है तो मुख्यमंत्री बिहार में संघ पर प्रतिबंध लगायें. भाजपा इस चुनौती का सामना करने को तैयार है।.
संघ पर जब भी प्रतिबंध लगाया गया, जन समर्थन से इसकी ताकत और बढ़ी. अयोध्या में राम मंदिर, कश्मीर में धारा-370 और देश में समान आचार संहिता के मुद्दे पर संघ और भाजपा की विचारधारा पहले जैसी है. फिर भी नीतीश कुमार 17 साल तक भाजपा के साथ रहे. वे भाजपा की मदद से दो बार केंद्रीय मंत्री और तीन बार मुख्यमंत्री बने. भाजापा की विचारधारा तब भी यही थी, लेकिन नीतीश कुमार को तब संघ से कोई परहेज नहीं था.
1974 के जेपी आंदोलन, 19 महीनों के आपातकाल और 1977 की जनता पार्टी में समाजवादी नीतीश कुमार संघ की विचारधारा वाले जनसंघ के साथ थे. समाजवादियों ने हमेशा सत्ता पाने के लिए जनसंघ-भाजपा का साथ लिया, लेकिन बाद में साथ छोड़ने के लिए संघ की विचारधारा का बहाना बनाया. 1980 में इन लोगों ने दोहरी सदस्यता का मुद्दा उठाकर जेपी के मार्गदर्शन में बनी जनता पार्टी तोड़ दी और इंदिरा गांधी की वापसी का रास्ता तैयार किया.
नीतीश कुमार ने एनडीए सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में काम किया, जबकि दोनों वरिष्ठ नेता संघ का स्वयंसेवक होने पर गर्व करते हैं. आज भाजपा-विरोधी दलों का रोड़ा जोड़कर प्रधानमंत्री बनने का सपना पूरा करने के लिए वे संघ के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं. उनके अवसरवाद को लोग भली भांति समझते हैं.