सुधीर मधुकर.पटना. गांधीजी यह जान गये थे कि स्वतंत्रता आंदोलन में जब तक भारत की महिलाएं नहीं आयेंगी, तब तक देश स्वतंत्र नहीं होगा। गांधी जी ने कस्तूरबा के माध्यम से चंपारण की महिलाओं को आगे लाया। उन्हें घर की देहरी से बाहर निकाला। देश में भारत की महिलाओं की जागृति में कस्तूरबा का योगदान अतुल्य है।
यह विचार आज यहां, गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार तथा बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के संयुक्त तत्त्वावधान में, कस्तुरबा गांधी की पुण्य-तिथि पर आयोजित, ऐतिहासिक चंपारण सत्याग्रह के अग्रदूत पं राज कुमार शुक्ल स्मृति व्याख्यान का उद्घाटन करते हुए, प्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक तथा त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल प्रो सिद्धेश्वर प्रसाद ने व्यक्त किये। प्रो प्रसाद ने कहा कि हम कस्तुरबा और गांधी को चंपारण लाने का ऐतिहासिक कार्य करने वाले पं राज कुमार शुक्ल जैसे महान व्यक्तियों को भूलने की भूल कर रहे हैं। हमें विकसित भारत बनाना है तो इन्हें याद रखना होगा।
सभा की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, चंपारण का ऐतिहासिक सत्याग्रह ने इस आंदोलन के जनक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को, मोहनदास करमचन्द्र गांधी से ‘महात्मा-गांधी’ तो बनाया हीं, उनके विचारों और आचरण में भी क्रांतिकारी परिवर्तन लाया। यहीं उन्होंने ‘एक-वस्त्री’ होने का संकल्प लिया तथा खादी, हस्तकर्घा, चरखा और स्वछता के अकूंठ पक्षधर तथा प्रयोग-कर्ता बने। और यह प्रेरणा उन्हें चंपारण की महिलाओं से मिली। प्रार्थना-सभाओं में महिलाओं की अल्प भागीदारी के संबंध में दुखीमन से जिज्ञासा करने पर जब उन्हें यह बताया गया कि, यहां की अधिकांश महिलाओं के पास मात्र एक साड़ी होती है और वे इस कारण से घर से बाहर नहीं निकलती, गांधी के पीड़ित मन ने एक अद्भुत संकल्प लिया, वह था कि जब तक भारत की सभी महिलाओं के पास पर्याप्त वस्त्र नहीं होते तबतक वे भी एक हीं वस्त्र धारण करेंगे। तभी से वे जीवन पर्यन्त अपने तन पर एक हीं धोती धारण करते रहे।
डा सुलभ ने कहा कि भले हीं चंपारण-आंदोलन में महिलाओं की सीधी भागीदारी कम रही, किंतु परोक्ष रूप में उनकी प्रेरणा ने स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं को प्राण-शक्ति और दिव्य-उर्जा प्रदान की। ‘बा’ से प्रेरणा और प्रशिक्षण पाकर अनेक महिलाओं ने हस्तकर्घा तथा स्वच्छता व सफ़ाई के प्रचार-प्रसार और महिलाओं की जागृति में मह्त्तपूर्ण भूमिकाएं दर्ज करायीं। अनेक महिलाओं ने आंदोलन को गति देने में तथा घर के पुरुषों को प्रेरित करने में प्रेरणादायी कार्य किया। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि महिलाओं के इस महत्ती योगदान को प्रकाश में नही लाया जा सका। इस दिशा में एक नयी पहल की जानी चाहिये। इतिहास के विद्यार्थियों को इसे शोध का विषय बनाना चाहिये। गहन शोध से अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्य हमारे सामने आ सकते हैं। उन्होंने कहा कि, आगामी अप्रैल से आरंभ हो रहे चंपारण-सत्याग्रह के शताब्दी वर्ष में यह कार्य गंभीरता से किया जायेगा और इसमें साहित्य सम्मेलन एक बड़ी भूमिका होगी।
इस अवसर पर अपने व्याख्यान में प्रसिद्ध कथा लेखिका डा उषा किरण खान ने कहा कि चंपारण-सत्याग्रह गांधीजी का प्रस्थान बिन्दु माना जाता है। इस सत्याग्रह में महिलाओं की भूमिका इस कारण से उल्लेखनीय नही हो सकी, उसका कारण, बिहार की तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था हीं थी, जिसमें घर की महिलाएं अपनी देहरी नहीं लांघ सकती थी। किंतु गांधीजी और ‘बा’ के प्रयास से इसमें व्यापक परिवर्तन अवश्य आया। गांधीजी ने स्त्रियों के प्रशिक्षण और उनकी सफ़ाई के प्रति उनकी चेतना के लिये व्यापक कार्य किया।
लेखिका तथा देशरत्न डा राजेन्द्र प्रसाद की पौत्री प्रो तारा सिन्हा ने कहा कि गांधीजी ने चंपारण के लोगों की कारुणिक-दशा देखी तो उन्हें लगा कि इनका जीवन इतना दयनीय है कि गुणवत्तापूर्ण जीवन से ये कोसों दूर हैं। गरीबी तो है हीं, अशिक्षा है और स्वास्थ्य-सफ़ाई दूर-दूर तक नही है। उन्होंने ‘बा’ के जरिये महिलाओं तथा अन्य लोगों को सफ़ाई रखने का प्रशिक्षण दिया। उन्होंने आश्रम आरंभ किये, जिसमें सात सौ महिलाएं अपनी सेवाएं दिया करती थी।
गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति की शोध अधिकारी डा गीता शुक्ल ने कहा कि, चंपारण-सत्याग्रह के शताब्दी-वर्ष को उत्साह-पूर्वक मनाने के लिये गांधी-स्मृति एवं दर्शन समिति अनेक कार्यक्रम बना रही है और हम साहित्य सम्मेलन जैसी संस्थाओं के साथ मिलकर बिहार में कार्य करना चाहते हैं। उन्होंने यहां के विद्वानों से सहयोग की अपील की। इस अवसर पर, बाल अधिकार संरक्षण आयोग, बिहार की अध्यक्ष निशा झा, वरिष्ठ साहित्यकार राम उपदेश सिंह ‘विदेह’, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा विनोद कुमार मंगलम, गांधी स्मृति की अधिकारी शास्वती झालानी तथा मनोज कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किये। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष नृपेन्द्र नाथ गुप्त ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कार्यक्रम के संयोजक प्रो सुशील कुमार झा ने किया। मंच का संचालन किया योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने।
आरंभ में मंचस्थ अतिथियों ने कस्तुरबा की पुण्यतिथि पर उनके चित्र पर पुष्पांजलि देकर उन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण किया। पं राज कुमार शुक्ल के चित्र पर भी पुष्प अर्पित किये गये। गायिका रेखा झा ने गांधी जी के प्रिय भजन “वैष्णव जन तो तैने कहिये जे पीड़ पराई जाने रे” का सस्वर पाठ किया। व्याख्यान में डा कल्याणी कुसुम सिंह, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, पं गणेश झा, डा विनय कुमारी विष्णुपुरी, अंबरीष कांत, आर प्रवेश, आनंद मोहन झा, शंकर शरण मधुकर, विश्व मोहन चौधरी संत, कृष्ण कन्हैया, प्रभात धवन, नेहाल कुमार सिंह तथा कृष्ण रंजन सिंह समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन व छात्र-छात्राओं ने भाग लिया।