प्रमोद दत्त.
बिहार के बहुचर्चित नटवरलाल अब नए अवतार में सक्रिय हैं.बिहार के प्रारम्भिक स्कूलों में बतौर शिक्षक वे बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं.चर्चित नटवरलाल के समान ये अकेले नहीं बल्कि इनकी संख्या हजारों में है.दिलचस्प तथ्य यह है कि शिक्षा के क्षेत्र में नटवरलालों के घुसपैठ की जानकारी राज्य सरकार व शीर्ष अधिकारियों को भी है.
एक अदद सरकारी नौकरी पाने के लिए राज्य के हजारों बेरोजगार नटवरलाल के स्टाइल में फर्जी डिग्री जमाकर शिक्षक बनकर लाखों-करोड़ों बच्चों के बीच शिक्षा की रोशनी जला रहे हैं.उल्लेखनीय है कि राज्य के प्रारम्भिक स्कूलों में 3,23,386 शिक्षकों की नियुक्ति पिछले 6-7 वर्षों के दौरान हुई जिसमें 1.80 लाख शिक्षकों की डिग्रियां संदेहात्मक है.इनमें हजारों की डिग्रियां फर्जी साबित हो चुकी है.इस फर्जीबाड़े की जांच निगरानी विभाग कर रहा है.यह जांच पटना हाईकोर्ट के आदेश पर हो रही है.इस जांच पर हाईकोर्ट की लगातार नजर (मोनेटरिंग) है.
सामाजिक कार्यकर्ता रंजीत पंडित व पुरेन्द्र सोवर्नियां द्वारा दायर याचिका (14559/2014) पर पटना हाईकोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति इकबाल अहमद अंसारी एवं न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह की खंडपीठ में इस मामले की सुनवाई चल रही है.हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने से पहले याचिकाकर्ता ने सूचना के अधिकार के तहत पर्याप्त सबूत जुटा रखे हैं.इन साक्ष्यों को दायर याचिका के साथ संलग्न किया गया है.याचिकाकर्ता ने पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की थी.इनके द्वारा जुटाए साक्ष्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि प्रारम्भिक स्कूलों पढा रहे नवनियुक्त शिक्षकों में हजारों नटवरलाल छिपे हैं. किसी ने बीएड की फर्जी डिग्री तो किसी ने टीईटी उतीर्णता का फर्जी प्रमाण पत्र लगा रखा है.कोई शारीरिक प्रशिक्षण की फर्जी डिग्री तो कोई अनुभव से संबंधित फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर शिक्षक बना है.पंडित रविशंकर वि.वि.रायपुर(छतीसगढ) के सहायक कुल सचिव (परीक्षा) ने बिहार सरकार के प्रधान सचिव को 29 मार्च2010 को ही 15 अभ्यर्थियों का नाम उल्लेखित करते हुए बताया था कि उनकी बीएड की डिग्री फर्जी है,उनके खिलाफ कार्रवाई करें.इसी प्रकार बिहार के बाहर के कई शिक्षण संस्थानों, लक्ष्मीबाई शारीरिक शिक्षा वि.वि.(ग्वालियर),असम हायर सेकेण्डरी एजुकेशनल कांउसिल (गुवहाटी),गुवहाटी वि.वि.,उदय प्रताप कॉलेज (वाराणसी),उदय प्रताप स्वशासी वि.वि.(वाराणसी),श्रीगांधी स्मारक शारीरिक शिक्षा महाविद्यालय(जौनपुर) आदि द्वारा बिहार सरकार को दी गई सूचना से स्पष्ट होता है कि इन संस्थानों के नाम से लगाई गई डिग्रियों में अधिकांश फर्जी है.
आश्चर्य तो यह है कि बेगूसराय के जोकिया स्थित डा.भीमराव अंबेदकर प्रशिक्षण संस्थान से प्राप्त शिक्षक प्रशिक्षण की डिग्री को शिक्षा विभाग ने पहले ही अमान्य कर दिया था.इसके बावजूद इस संस्थान से प्राप्त डिग्री के आधार पर बहाली हो गई.हाईकोर्ट की खंडपीठ में सुनवाई के दौरान सरकार को फटकार लगाते हुए कोर्ट ने टिप्पणी की कि शिक्षा मंत्री सार्वजनिक तौर पर स्वीकारते हैं कि 25000 शिक्षक फर्जी डिग्री के आधार पर कार्यरत हैं तो दुसरी ओर निगरानी विभाग कोर्ट में यह तथ्य रखते हैं कि 6000 शिक्षकों की डिग्री जांच में मात्र तीन संदेहात्मक पाए गए.जांच का ढीलापन तब सामने आ गया जब हाईकोर्ट ने फर्जी डिग्रीधारी शिक्षकों को 15 दिनों की मोहलत देते हुए आदेश दिया कि समय सीमा के अंदर जो स्वेच्छा से इस्तीफा दे देंगें उनपर न तो आपराधिक मामला दर्ज होगा और न वेतन मद में प्राप्त राशि की वसूली की जाएगी.यह राहत मिलते ही लगभग 3000 शिक्षकों ने स्वेच्छा से इस्तीफा दे दिया.बहरहाल जांच की प्रक्रिया जारी है और इंतजार है कि कितने नटवरलाल पकड़ में आते हैं.
पटना हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता व इस मामले के याचिकाकर्ता के वकील दीनू कुमार का कहना है कि पूर्व राष्ट्रपति डा.एपीजे अब्दुल कलाम की अंतिम इच्छा थी कि वे शिक्षक की भूमिका में बने रहें.शिलांग में लेक्चर देते उनकी मृत्यु भी हुई.बिहार की शिक्षा व्यवस्था के प्रति वे काफी गंभीर थे और बिहार स्थित नालन्दा वि.वि. से जुड़े भी रहे.लेकिन इसी बिहार में फर्जी डिग्रीधारी शिक्षकों से शिक्षा व्यवस्था चौपट तो हो ही रही है,सरकारी खजाने से अरबों का ब्यारा-न्यारा भी हो रहा है.दूसरी ओर गरीब व मेघावी युवाओं का हक भी मारा जा रहा है.