राकेश प्रवीर.
पटना। पिछले महीने संसद में पेश केन्द्रीय पूल हेतु धान की खरीद एवं मिलिंग पर भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में बिहार में कई सौ करोड़ के चावल घोटाले का प्रमाणिक खुलासा हुआ है। इस घोटाले के जरिए केवल किसानों की ही हकमारी नहीं हुई है बल्कि राज्य के करोड़ों गरीबों के निवाला पर भी डाका डाला गया है। दरअसल जिस चावल का बिचैलियों, राइस मिल मालिकों व राज्य खाद्य निगम के अधिकारियों की मिलीभगत से लूट हुई है वह उन करोड़ों बीपीएल परिवारों का निवाला है, जो उन्हें पीडीएस के जरिए सस्ती दर पर प्राप्त होता। घोटाले की वजह से सूबे के दर्जनों जिलों में चार-छह महीने तक खाद्यान्नों का वितरण नहीं हो पाता है। राज्य सरकार केन्द्र पर तो केन्द्र राज्य सरकार पर ठीकरा फोड़ कर अपनी जिम्मेवारियों से बचने की कोशिश करती हैं। घोटालों का यह खेल पिछले कई वर्षों से जारी है।
इस बीच आरटीआई कार्यकर्ता शिव प्रकाश राय की अथक मेहनत से यह मामला पटना हाईकोर्ट की चैखट तक पहुंच गया और अदालत नेे इस मामले को काफी गंभीरता से लेते हुए कहा है कि धान खरीद की जांच किसी बड़ी एजेंसी से कराना जरूरी लग रहा है। हाई कोर्ट की टिप्पणी के बावजूद राज्य सरकार इस महाघोटाले पर चुप्पी साधी हुई है। कैग की रिपोर्ट में भी इसकी पुष्टि हो चुकी है।
घोटाले के जानकारों का मानना है कि चारा घोटाला तो इस घोटाले के सामने कुछ भी नहीं है। पिछले तीन सालों यानी 2011 से 2014 के बीच में चावल मिलों को दिया गया 2,673 करोड़ रुपये का धान छू-मंतर हो गया है। ये आंकड़े आरटीआई के तहत मांगी गई सूचना में उजागर हुए हैं, जबकि सरकार के मुताबिक, केवल 1,581 करोड़ रुपये की वसूली होनी है, जिसमें से 162 करोड़ रुपये की वसूली की जा चुकी है. इसके अलावा बेस गोदाम में2011-12 से लेकर 2013-14 तक 219 करोड़ रुपये का धान बर्बाद हो गया। इस संबंध में 122 पदाधिकारियों पर कार्रवाई शुरू हुई है और 17 के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज की गई है। आरटीआई कार्यकर्ता शिव प्रकाश राय के मुताबिक चावल मिलों को धान देने से पहले उसके एवज में चावल ले लेने का प्रावधान है। इस प्रावधान के उल्लंघन के कारण ही यह स्थिति पैदा हुई।
पटना हाईकोर्ट को बेस गोदाम से संबंधित आंकड़े उपलब्ध कराते हुए याचिकार्का श्री राय ने सरकार से कड़ी कार्रवाई करने की गुहार लगाई। याचिकाकर्ता के अनुसार यह बड़ा घोटाला है और इसमें बड़े-बड़े लोग शामिल हैं। श्री राय के अनुसार वे 2012 से ही निगरानी विभाग और आर्थिक अपराध इकाई को पत्र लिखते रहे हैं, मगर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। श्री राय कहते हैं कि अब मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है और पूरी उम्मीद है कि वहां से न्याय जरूर मिलेगा। अदालत को बताया गया है कि बिहार राज्य खाद्य निगम द्वारा धान की खरीद में बड़े पैमाने पर गड़बडि़यां की जा रही हैं। केवल एक साल में ही चार सौ करोड़ रुपये की गड़बड़ी सामने आई है। मिल मालिकों, अधिकारियों एवं बिचैलियों की मिलीभगत से घोटाले का खेल जारी है। एक अनुमान के अनुसार, अगर जांच हो, तो घोटाले की राशि दो हजार करोड़ का आंकड़ा पार कर जाएगी। सीएजी की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि 2011-12 में चावल मिलों से वसूली न होने के कारण 433.94 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इसी प्रकार सूबे के सात जिलों औरंगाबाद, नालंदा, रोहतास, कैमूर, पूर्वी चाम्पारण, भोजपुर और पटना के आॅडिट परीक्षण में महालेखाकार ने पाया कि वर्ष 2011-12 से लेकर 2013-14के बीच 944 मिलों को धान भर कर आपूर्ति किए गए 2 करोड़ 23 हजार 873 बोरों को वापस नहीं किया गया जिससे राज्य खाद्य निगम को 43करोड़ 58 लाख रुपये का नुकसान हुआ है। इसके साथ ही सरकार को 670 करोड़ के 3 लाख 32 हजार मे. टन चावल भी मिलों ने वापस नहीं किया है।