29 वर्षों में नहीं बदली जहानाबाद की तस्वीर

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आंनंद प्रकाश.

गया जिला से काटकर 1 अगस्त 1986 को जहानाबाद को जिला बनाया गया. औरंगजेब की बहन जहानआरा के नाम पर जहानाबाद शहर का नाम रखा गया था.कहते है 17 वीं शताब्दी में औरंगजेब के शासनकाल में भीषण आकाल पड़ा था. मुगल बादशाह ने जहानआरा के नेतृत्व में एक दल अकाल राहत कार्य हेतु भेजा था. जहानआरा के स्मृति में पहले जहानआरबाद और फिर जहानाबाद नाम हो गया. पहले यह गया जिला का एक अनुमंडल था. लेकिन जब इलाके में नक्सल गतिविधियों तेज हुई तो इसे रोकने के लिए जहानाबाद को जिला का दर्जा दे दिया गया. कंसारा नरसंहार  के बाद यह जिला बना. लेकिन 29 वर्षों बाद भी जहानाबाद में बुनियादी सुविधाओं का अभाव साफ तौर पर दिखाई पड़ता है. नहीं बदली जहानाबाद की तस्वीर.

शहर को विकसित करने की किसी तरह कि योजना जहानाबाद में नहीं दिखती.लोग अपना मकान जमीन खरीदकर बना तो लिए लेकिन शहर की सभी गलियां संकीर्ण होती चली गई. शहर में कहीं पर भी जाम लगता है तो पूरा आवागमन बाधित हो जाता है. संकीर्ण गलिया में शहर का मेन मार्केट भी है. चाहे चावल मंडी हो या सब्जी मंडी या कपड़ा की खरीद करनी हो संकीर्ण गलियों में ही आपको खरीदारी करनी पड़ती है.

शहर में न कोई पार्क है न ही बढ़िया होटल जहां पर कोई आकर एक दिन के लिए भी ठहरे. या रात्रि विश्राम कर सके. जीतनराम मांझी मुख्यमंत्री थे जो जिला के मखदुमपुर विधानसभा से जीते थे. उन्होंने कुछ घोषणायें कि थी जिला को विकसित करने की जो सरकारी फाईलों  मं दबकर रह गई उसपर किसी तरह का विचार शायद नहीं किया गया. माझी ने पर्यटन की दृष्टि से बराबर पहाड़ी के पास फाईव स्टार होटल तक बनाने की घोषणा की थी. लेकिन फाईव स्टार की सुविधा राज्य में कहीं नहीं है तो जहानाबाद में कैसे हो सकता है. जो हो लेकिन राज्य सरकार को चाहिए की इस छोटे शहर का विकास के लिए कोई ठोस कदम उठाये ताकि शहर में बुनियादी सुविधाओं का लाभ पहुच सके.

शहर में धूल धुआँ,  शोरगुल और  हर जगह  कूड़ों की ढेर हैं, बजबजाती नालियाँ, जाम में फंसी हुई रेंग रही गाड़ियां., सो रहे अफसरान ,नेता जी व्यस्त हैं- यही जहानाबाद की नसीब में है. राम भरोसे तंत्र में सबकी मोटी खाल है. जहानाबाद शहर का यही हाल है. जी हाँ बिहार के जहानाबाद शहर का यही हाल है , वैसे तो इसे शहर कहना न्यायोचित नही कहा जा सकता क्यूंकि यहाँ किसी तरह की सुविधा नही दी गयी है , नालियाँ अपने गंतव्य तक पहुँच ही नही पाती तो अधिकांश मुहल्लों में आपातकाल वाली स्थिति में ना तो एम्बुलेंस पहुँच सकता और ना ही फायर ब्रिगेड की गाड़ी .

कहने को तो शहर से दो दो नेशनल हाईवे गुजरते हैं लेकिन चौतरफा अतिक्रमण के कारण पूरा शहर जाम से कराहते रहता है , आमलोगों में ना तो किसी तरह की कोई जागरूकता है और ना ही कानून का पालन करने की इच्छा , प्रशासन भी ऐसी स्थितियों के लिए कम दोषी नही है , वो भी सब कुछ देखते हुए भी आँख मूंदे रहता है . शहर में नये नये मार्केटिंग काम्प्लेक्स बनने लगे हैं लेकिन किसी में भी नियमों का पालन नही होता , निर्माण के लिए सामग्री सड़क पर ही गिरायी जाती है जिससे सड़क संकीर्ण हो जाती है . खासकर शहर के नेशल हाईवे 110 रेलवे पुल के पास जाम हमेशा रहता है जिससे अरवल के तरफ जाने वाले लोग दिन दिन भर जाम में फंसे रह जाते है .

कानून का डर बिल्कुल दिखता ही नही है. शहर की आबादी बढ़कर डेढ़ लाख हो चुकी है , छोटे से शहर में हजारों ऑटो चलने लगे हैं जो ट्रैफिक व्यवस्था को चरमराने में अहम् योगदान देते हैं . ऐसा भी नही है कि इस स्थिति को बदलने के लिए कोई सक्रिय नही है बल्कि यहाँ के कुछ युवाओं ने जहानाबाद डेवलपमेंट कमिटी नामक संगठन बनाकर हर मंच पर इन मुद्दों को उठाया है , इस संगठन में देश के प्रधानमंत्री को हजारों की संख्या में पत्र लिखा है और कई बार जिलाधिकारी को ज्ञापन दिया है , इसके अलावा इस संगठन के लोग सोशल मीडिया के माध्यम से अक्सर इन मुद्दों को उठाते रहे हैं .  कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि यहाँ के लोग आशावादी हैं और ये उम्मीद किये हुए हैं कि जल्द ही स्थितियां बदलेगी और उनका जहानाबाद शहर कम से कम रहने लायक तो बन ही जायेगा .

 

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