प्रमोद दत्त
पटना. कोर्ट की प्रक्रिया में असहयोग पर शीर्ष अधिकारियों को फटकार लगानेवाले पटना हाईकोर्ट के रिटायर जज खुद हाईकोर्ट की न्यायिक प्रक्रिया में असहयोग कर रहे हैं.रिटायर जज के साथ साथ बीपीएससी के अध्यक्ष जैसे संवैधानिक पद पर रह चुके रिटायर आईएएस भी पटना हाईकोर्ट की नोटिस पर भी न्यायिक प्रक्रिया में हाजिर नहीं हो रहे हैं.जबकि अभी हाल में सोनिया-राहुल जैसे देश के शीर्ष राजनीतिबाजों ने भी कोर्ट की प्रक्रिया का सम्मान किया और कोर्ट में हाजिर हुए.
मामला लोकायुक्त पद पर नियुक्ति से संबंधित विवाद से जुड़ा है.’बिहार लोकायुक्त एक्ट 2011” के अनुसार लोकायुक्त को तीन सदस्यीय बनाया गया जिसमें एक चेयरपर्सन और दो सदस्यों में एक न्यायिक सेवा के व दूसरे गैरन्यायिक सेवा के तय किए गए हैं.विगत 23 अक्तूबर15 को लोकायुक्त सलेक्शन कमिटी ने न्यायिक सेवा से पटना हाईकोर्ट के रिटायर जज श्यामकिशोर शर्मा और गैरन्यायिक सेवा से बीपीएससी के पूर्व अध्यक्ष व रिटायर आईएएस के.सी.साहा का नाम लोकायुक्त के दो रिक्त पदों के लिए अनुमोदित किया.
इस निर्णय के खिलाफ समाज सेवी मिथिलेश कुमार सिंह ने पटना हाईकोर्ट में याचिका(17245/15) दायर कर दी.27अक्तूबर15 को दायर याचिका में दोनों लोकायुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया को चुनौती दी गई.उनके अधिवक्ता दीनू कुमार ने हाईकोर्ट से आग्रह किया कि इस मामले की सुनवाई 29अक्तूबर15 को कर ली जाए अन्यथा माननीय राज्यपाल महोदय द्वारा दोनों का शपथ ग्रहण हो जाएगा.इस आग्रह को स्वीकारते हुए हाईकोर्ट ने पूर्व न्यायाधीश श्यामकिशोर शर्मा व बीपीएससी के पूर्व अध्यक्ष के.सी.साहा को नोटिस जारी करते हुए सुनवाई की तारीख 6नवम्बर15 को तय कर दी.उसी रोज सुनवाई कर रही,कार्यकारी मुख्यन्यायाधीश न्यायमूर्ति इकबाल अहमद अंसारी व न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह की खंडपीठ ने यह भी आदेश दिया कि बिना हाईकोर्ट की अनुमति के किसी की लोकायुक्त पद पर नियुक्ति नहीं की जाएगी. इसके साथ साथ खंडपीठ ने लोकायुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया से संबंधित संचिका को कोर्ट में प्रस्तुत करने का आदेश सलेक्शन कमिटी के संयोजक (बिहार विधान परिषद के सभापति) को दिया.इस प्रकार दोनों लोकायुक्त की नियुक्ति पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी.
6नवम्बर15 को हाईकोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान श्यामकिशोर शर्मा व के.सी.साहा न तो कोर्ट में हाजिर हुए और न ही उनके पक्ष को रकने के लिए उनके वकील उपस्थित हुए.पुन: 7नवम्बर15 को कोर्ट में इसपर बहस हुई और दोनों गैरहाजिर रहे. तीसरी तारीख 14 दिसम्बर15 को हुई सुनवाई के दौरान भी दोनों अनुपस्थित रहे.हाईकोर्ट ने दोनो को पूर्व में जारी नोटिस को वैध मानते हुए 5जनवरी16 को फाइनल बहस की तारीख तय की है.
पटना हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया कि मिथिलेश कुमार सिंह द्वारा दायर याचिका में तीन प्रमुख बिंदुओं की ओर हाईकोर्ट का ध्यान आकृष्ट कराया गया है.पहला,30जून15 को प्रकाशित विज्ञापन के अनुसार पूर्व न्यायाधीश श्यामकिशोर शर्मा का न तो नामांकन था और न ही सर्च कमिटी ने इनके नाम की अनुशंसा की थी.जबकि नियमानुसार सलेक्शन कमिटी को उसी नाम का अनुमोदन करना है जो सर्च कमिटी द्वारा अनुशंसित है.इस प्रकार 23अक्तूबर15 को सलेक्शन कमिटी ने श्री शर्मा का नाम अनुमोदित किया वह अवैध,द्वेषपूर्ण व भेदभावपूर्ण है.साथ ही यह लोकायुक्त एक्ट 2011 के विपरीत भी है.दूसरा,अगर के.सी.साहा को उपयुक्त समझा जाता तो पहले की सर्च कमिटी द्वारा जरुर अनुशंसा की जाती.क्योंकि श्री साहा पूर्व में बीपीएससी का अध्यक्ष रह चुके हैं जो एक संवैधानिक पद है.संविधान के अनुच्छेद 319(बी) के तहत वे स्टेचुटेरी पद (लोकायुक्त) पर बहाल नही हो सकते हैं. और तीसरा, जो सलेक्शन कमिटी बनी है उसमें बिहार लोकायुक्त एक्ट 2011 की धारा 4(डी) का अनुपालन नहीं किया गया है.एक्ट के अनुसार पूर्व लोकायुक्त रामनन्दन प्रसाद को कमिटी में नहीं रखा गया है.इसलिए यह सलेक्शन कमिटी ही त्रुटिपूर्ण है.अत: त्रुटिपूर्ण सलेक्शन कमिटी के 23अक्तूबर15 के निर्णय (अनुमोदन) को खारिज किया जाए.
उल्लेखनीय है कि अगस्त2011 में लोकायुक्त पद से अपने अवकाश ग्रहण के समय रामनन्दन प्रसाद ने सार्वजनिक तौर पर कहा था- “ बिहार का लोकायुक्त दंतविहिन बाघ है .“ लोकायुक्त नियुक्ति को लेकर जो विवाद हाईकोर्ट पहुंचा है इससे यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या नीतीश सरकार दंतविहिन लोकायुक्त ही चाहती है.