प्रमोद दत्त
इस बार प्रमुख दलों में जदयू ने सबसे अधिक वर्तमान विधायकों के टिकट काटे, जिसमें कई मंत्री भी रह चुके हैं. यह माना जाता है कि जब पार्टी धरातल पर मजबूत होती है तब टिकट काटने का अधिक नुकसान नहीं होता है. लेकिन जदयू के सामने तालमेल की मजबूरी में टिकट काटा गया.
1995 में लालू प्रसाद का नेतृत्व मजबूत था. तब वही जनता दल के सर्वेसर्वा थे. 1995 विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद ने 11 मंत्रियों सहित 32 विधायकों के टिकट काट दिए थे. तत्कालीन मंत्रियों में गजेंद्र प्रसाद हिमांशु, रामविलास मिश्र, उदय नारायण राय, अजित कुमार सिंह, सुरेंद्र सिंह, कफिल अहमद कैफी, रामपरीक्षण साहु, नवल किशोर भारती आदि का लालू प्रसाद ने टिकट काट दिया था.
इतना ही नहीं लालू प्रसाद ने वैसे विधायकों का भी टिकट काट दिया था, जिसे दूसरे दलों से तोड़कर जद में शामिल किया था और 1990 से 1995 तक अपनी अल्पमत की सरकार को बचाकर रखा था. ऐसे लोगों में कांग्रेस से जद में आए श्याम नारायण प्रसाद, रघुनाथ प्रसाद, आईपीएफ से आए कृष्णदेव यादव, उमेश सिंह और भगवान सिंह, भाजपा से जद में आए ज्ञानेश्वर यादव, झामुमो से जद में आए हाड़ी राम सरदार और सुमृत मंडल को जनता दल टिकट से वंचित किया गया.
इनके अलावा उमाशंकर सिंह, केदार प्रसाद, नवल किशोर शाही, गौरी शंकर नागदंश, जगदीश चौधरी, योगेंद्र नारायण सरदार, राधाकांत यादव, प्रेमनाथ जायसवाल, मो. अब्दुल जलील, रणवीर यादव, कृष्णचंद्र प्रसाद सिंह, आरपी शर्मा, सिया देवी, हरिनारायण प्र. सिन्हा, रामाधार सिंह, मधुर सिंह आदि तत्कालीन जद विधायकों एवं समर्थक निर्दलीय विधायकों का टिकट काट दिया गया था.