प्रमोद दत्त,पटना. मुस्लिम वोटों के बिखराव को रोकने के उद्देश्य से पिछड़ावाद के कंधे पर सवार महागठबंधन के प्रमुख नेताओं में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार आज की तारीख में जितने नजदीक नजर आ रहें है उससे अधिक दोनों के बीच दूरी बनी हुई है जो चुनाव के कारण फिलहाल नजर नहीं आ रहीं है. नीतीश कुमार जहां कांग्रेस के अधिक करीब है वहीं लालू प्रसाद मुलायम सिंह यादव के अधिक करीब थे, जिनके बीच राजनीतिक मंच पर अब दूरी बन गई है.
सूत्रों की माने तो नीतीश कुमार के दबाव में कांग्रेस की झोली में 40 सीटें चली गई. लालू प्रसाद की इच्छा थी कि कांग्रेस को 20 -25 सीट दी जाए और शेष 18-23 सीटें एनसीपी और सपा के लिए छोड़ी जाए. लालू प्रसाद जब तक मुलायम सिंह यादव से दबाव बनाते इससे पहले नीतीश कुमार , कांग्रेस से दबाव बनाने में सफल हो गए. दरअसल नीतीश कुमार जदयू और कांग्रेस कोटे में 140 सीटें यह सोचकर ली ताकि भविष्य में लालू प्रसाद का प्रयास यह है कि चुनाव बाद राजद के बिना महागठबंधन की सरकार बनने की स्थिति नहीं बने. कानूनी कारणों से लालू प्रसाद किसी संवैधानिक पद नहीं बैठ सकते इसलिए इस चुनाव में अपने बेटे दृबेटी को स्थापित करना उनका असली मकसद है.
लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के बीच चुनावी मुद्दों को लेकर भी भारी मतभेद है. नीतीश कुमार जहां विकास और बिहारी स्वाभिमान (डीएनए ) पर चुनाव को केंद्रित करना चाहते है , वहीं लालू प्रसाद पिछड़ावाद को पुनः जगाना चाहते है. लालू प्रसाद जहां जातिय गणना को मुद्दा बनाते हुए मंडल राज 2 को प्रचारित करने में लगे हुए है. वहीं नीतीश कुमार विकास के लिए विजन2025, पीएम के पैकेज को धोखा और डीएनए को लेकर बिहारी स्वाभिमान जगाने पर लगे हैं. इस प्रकार महागठबंधन के अंदर विकास केंद्रित नीतीश कुमार बनाम मंडलवाद केंद्रित लालू प्रसाद के बीच विचारों का संघर्ष जारी है. लालू मंडलराज 2 की बातें करते है तो नीतीश कुमार सवर्ण आयोग का गठन करते है.
विचारों एवं मुद्दों का मतभेद स्वाभिमान रैली में दिखाई दिया. एक मंच से लालू यादव ने जहां पिछड़ावाद और मंडलराज -2 पर जोर दिया वहीं नीतीश कुमार पैकेज पर अपना भाषण केंद्रित किया. अन्य प्रमुख वक्ताओं , सोनिया गांधी व शरद यादव ने भी नीतीश कुमार के स्वर में स्वर मिलाते हुए बिहारी स्वाभिमान की बात की. रैली के माध्यम से पैकेज देने के मामले में लालू प्रसाद पिछड़ गए.
लेकिन लालू प्रसाद वोटों की समीकरण में अब भी आगे हैं. सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव से भले उन्हें खुला समर्थन नहीं मिले लेकिन आंतरिक तालमेंल दोनों के बीच रहेगा. प्रेक्षकों का मानना है कि सपा के उम्मीदवार भी उसी हिसाब से तय किए जा सकते है, जो लालू प्रसाद को मदद करें और नीतीश कुमार की जड़ खोद दे. महागठबंधन से बाहर होने के बाद न सिर्फ सपा के बिहार प्रभारी बल्कि मुलायम सिंह की भी जो प्रतिक्रिया आई उसमें नीतीश कुमार पर ही प्रहार किया गया. मुलायम सिंह यादव ने नीतीश कुमार की धर्मनिरपेक्षता पर सवाल उठाते हुए कहा कि जो 17 वर्षों तक भाजपा की गोद में खेलते रहें वे धर्मनिरपेक्ष कैसे हो सकते है ? वहीं सपा के बिहार प्रभारी ने नीतीश कुमार को अहंकारी बताया.
प्रेक्षकों का मानना है कि नीतीश कुमार के प्रचार अभियान के तौर तरीके पर मुलायम सिंह यादव पहले से नाराज थे. प्रचार अभियान में महागठबंधन के सारे नेताओं की उपेक्षा कर नीतीश पर ही केंद्रित किये जाने पर पहले ही आपत्ति प्रकट की गई थी. लेकिन अस्पसंख्यक वोटों के ध्रुवीकरण की लालच में महागठबंधन के आंतरिक मतभेद को दबा कर रखा. सीटों के बंटवारे के सवाल पर भी जबतक लालू प्रसाद मुलायम सिंह का इस्तेमाल करते इससे पहले नीतीश कुमार कांग्रेस ने का इस्तेमाल कर लिया. भारी मतभेद के बावजूद यह देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश की छवि और लालू प्रसाद के जनसेवक में कौन किसका बेहतर इस्तेमाल कर पाता है.