(प्रमोद दत्त) ……………
बिहार चुनाव की घोषणा से ठीक पहले नीतीश कुमार ने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल की उपलब्धियों से संबंधित सात सूत्री एजोंडा बताया. उधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1.25 लाख करोड़ के विशेष पैकेज की घोषणा की. घोषणा के बाद बहस चली कि पैकेज में नई योजनाएं है या पुरानी योजनाओं का रिपैकेजिंग है. राजग और महागठबंधन की ओर से खुली बहस की चुनौतियां भी दी गई. तब तक ऐसा लग रहा था कि बिहार के चुनाव का मुद्दा विकास और भावी एजेंडा ही होगा.
लेकिन जैसै-जैसे चुनाव अभियान में तेजी आई विकास का एजेंडा पीछे छूट गया. भाषणों के माध्यम से तू-तू मैं-मैं पर उतर आए सारे नेता. भाजपा एवं राजग नेता कहने लगे कि जंगल राज-2 को नहीं आने देंगे तो जवाब में लालू प्रसाद का बयान आया कि मंडल राज-2 के डर से भाजपा बौखला गई है. उतना ही नहीं दो कदम आगे बढ़ते हुए लालू प्रसाद हर भाषण में कहने लगे कि यह लड़ाई अगड़े-पिछड़े की है. संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की बात तो लालू प्रसाद के साथ-साथ नीतीश कुमार भी कहने लगे कि भाजपा आरक्षण को समाप्त करना चाहती है. इधर, उत्तर प्रदेश के दादरी कांड के बाद गोमांस का विवाद, बिहार चुनाव का मुद्दा बना दिया गया. यह विवाद चल ही रहा था कि “शैतान” की चर्चा शुरू हो गई. लालू प्रसाद ने खुद कहा कि उनमें शैतान प्रवेश कर गया है. और जब लालू प्रसाद के उस बयान को नरेंद्र मोदी ने मुंगेर की सभा में दोहराया तो लालू प्रसाद ने नरेंद्र मोदी को ब्रह्मपिचास कह दिया. इन आपत्तिजनक शब्दों के प्रयोग पर चुनाव आयोग तक शिकायतें भी पहुंच रही है. अमित शाह द्वारा लालू प्रसाद को चारा चोर कहे जाने पर और लालू प्रसाद द्वारा अमित शाह को नरभक्षी कहे जाने पर चुनाव आयोग ने केस भी दर्ज कराया है.
बहरहाल, बिहार चुनाव में मुद्दे भटकाए जा रहे हैं. बिहार में गरीबी, अशिक्षा, उद्दोग, इन्फ्रा स्ट्रक्चर आदि विकास की चर्चा होने के बजाय गोमांस, शैतान, ब्रह्मपिसाच, चारा चोर, नरभक्षी आदि की चर्चा कर मतदाताओं को भी भटकाया जा रहा है. दरअसल, अगड़ा-पिछड़ा या गोमांस आदि की चर्चा कर बिहार चुनाव में जातीय या धार्मिक भावनाएं भड़का कर मतदाताओं की गोलबंदी करने की कोशिश हो रही है. जिसे सीधे तौर पर आचार संहिता का उलंघन माना जाता है.