आलोक नंदन,पटना.बिहार के चार मुस्लिम बाहुल्य सीमांचल जिलों किशनगंज, अररिया, पुर्णिया और कटिहार के सभी 24 विधानसभा क्षेत्रों से ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी द्वारा चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद महागठबंधन खेमे में बेचैनी है, हालांकि महागठबंधन का कोई भी नेता खुलकर इस बेचैनी को व्यक्त नहीं कर रहा है। औवैसी बड़े सलीके से सीमांचल के पिछड़ेपन के मुद्दे को उठाकर इसे मुसलमानों के साथ-साथ अतिपिछड़ावाद से जोड़ने की जुगत में लगे हुये हैं। इन सीटों पर अब तक राजद,कांग्रेस और जदयू का ही दबादबा रहा है। मुसलमानों का एक मुश्त वोट इन्हें ही मिलता रहा है। इसलिए औवेसी के चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद इनके माथे पर शिकन पड़ना स्वाभाविक है।
इस लिहाज से औवैसी पर हमले भी होने शुरु हो गये है। उन्हें साफतौर पर बीजेपी का एजेंट करार दिया जा रहा है। हालांकि औवैसी खुलकर कह रहे हैं कि बीजेपी से उनका कोई ताल्लुक नहीं है, आज की तारीख में बीजेपी और आरएसस उनका दुश्मन नंबर एक है। इसलिए बीजेपी के साथ हाथ मिलाने का सवाल ही नहीं पैदा होता है। उनका कहना है कि सीमांचल विकास की धारा से कोसो दूर रहा है। यहां के बच्चे हैदराबाद के जर्री उद्योग में दिन रात काम कर रहे हैं। इस इलाके में शिक्षा की स्थिति भी बदत्तर है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक ओर नालंदा के विकास के लिए करोड़ों रुपये का अनुदान दे रहे हैं तो दूसरी सीमांचल के क्षेत्रों की पूरी तरह से अनदेखी कर रहे हैं। पटना के मौर्या होटल में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने जोर देते हुये कहा कि वह तो सीमांचल के सिर्फ 24 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं, बाकी सीट पर महागठबंधन जीत कर दिखाये।
ओवैसी के चुनाव लड़ने के के बाबत जब जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि इस बार बिहार के चुनाव मे सिर्फ दो धुर्व होंगे, एक एनडीए और दूसरा महागठबंधन। बाकी किसी तीसरे के लिए कोई स्थान नहीं है। वैसे बिहार की जनता महागठबंधन के पक्ष में निर्णय कर चुकी है। औवैसी के चुनाव लड़ने के मुद्दे पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सिर्फ इतना कहा कि लोकतंत्र में सभी को चुनाव लड़ने का अधिकार है।
औवैसी को लेकर सबसे अधिक आक्रमकता राजद खेमे में देखी जा रही है। खुलकर तो औवैसी के खिलाफ राजद में कोई नहीं बोल रहा है लेकिन अंदरखाते राजद कार्यकर्ता इस बात का प्रचार कर रहे हैं कि औवैसी भाजपा के इशारों पर मुसलमानों को बरगला रहे हैं।
औवैसी से परेशानी रांकपा को भी है। तारिक अनवर ने तो साफतौर पर कह दिया है कि सूबे के मुसलमान किसी सांप्रदायिक नेता को तरजीह नहीं देंगे। लेकिन औवैसी जिस तरह से सीमांचल में घुसपैठ कर रहे हैं उससे सूबे के स्थापित मुस्लिम नेताओं की परेशानी बढ़ गई है। सीमांचल में मुसलमानों का एक तबका खुलकर औवैसी के पक्ष पर खड़ा हो गया है और इसकी धमक पटना में भी महसूस की जा रही है।
बिहार विधान सभा चुनाव के परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा कि औवैसी कहां तक सफल हुये. लेकिन फिलहाल चुनावी ताल ठोकने से महागठबंधन का सेहत पर तो असर पड़ ही रहा है। किशनगंज में मुसलमानों की आबादी तकरीबन 60 फीसदी है, अररिया, पूर्णिया और कटिहार में इनकी आबादी तकरीबन 40 फिसदी है। सही विकल्प के अभाव में अब तक मुसलमान बीजेपी के खिलाफ नकारात्मक वोट करते रहे हैं। इतना तो स्पष्ट है कि अब औवैसी चुनावी मैदान में आने से सीमांचल के मुसलामानों को एक विकल्प नजर आ रहा है। यदि इस विकल्प की ओर मुसलमान अग्रसर होते हैं तो निश्चिततौर पर इसका नुकसान महागठबंधन को ही होना है। कल तक मुलसमानों को टेक गरारेंट्ट वाले अंदाज में लेने वाले नीतीश कुमार और लालू यादव को अब अपनी मुसलमान नीति पर नये सिरे से तो सोचना पड़ेगा ही।