चुनावी ताल ठोकते वामपंथी

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आलोक नंदन,पटना.दमखम के साथ वापपंथी भी अब बिहार विधान सभा चुनाव में ताल ठोक रहे हैं। पिछले दिनों पटना के श्री कृष्ण मेमोरियल हाल में 6 वामपंथी दलों- सीपीआई, सीपीआई (एम),सीपीआई (एमएल), एसयूसीआई (सी), फारवर्ड ब्लाक और आरएसपी- ने संयुक्त रूप से जन राजनीतिक कन्वेशन करके स्पष्ट रूप से घोषणा कर दी कि बिहार विधान सभा के चुनाव में कुल 243 सीटों पर वे अपने उम्मीदवार उतारेंगे और एक साथ एनडीएन गठबंधन और महागठबंधन को चुनौती देगें। बाद में इस बाबत एक बैठक भी हुई और उसमें साक्षा रणनीति पर विचार विमर्श करने के साथ सीटों के बंटवारे पर भी चर्चा की हुई।
वैसे तो सोवियत संघ के विघटन के तकरीबन तीन दशक बाद पूरी दुनिया में वामपंथ का दबादबा कर हुआ है। इसका स्पष्ट असर भारत में चलने वाले वामपंथी आंदोलनों पर भी पड़ा है। लेकिन बिहार में यदि वामपंथी संयुक्त रूप से तीसरा विकल्प पेश करने में कामयाब हो जाते हैं तो निश्चित रूप से निश्चितरूप से इसका असर सूबे की राजनीतिक पर तो पड़ेगा ही।
सीपीआई (एम) के नेता सीताराम येचुरी ने तमाम वामपंथी दलों के दिमाग को साफ करते हुये कहा है कि वामपंथियों के संयुक्त चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद बिहार का चुनाव निश्चित रूप से तीन ध्रुवीय हो जाएगा। उनका कहना है कि एक ध्रुव पर फासीवादी ताकत बीजेपी और उसके घटक दल खड़े हैं जो देश की बहुल्य संस्कृति को नष्ट करने पर तुले हुये हैं तो दूसरे ध्रुव पर जदयू, राजद और कांग्रेस की अवसरवादी शक्तियां खड़ी हैं जो ऐनकेन प्रकारेण सत्ता पर काबिज रहना चाहती है। तीसरा ध्रुव वामपंथियों का होगा जो सही मायने में गरीबों और वंचितों की लड़ाई लड़ रहा है। बस जरूरत है पूरी ताकत के साथ उठ खड़ा होने की।
बिहार में वामपंथियों का जनाधार रहा है, इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है। यदि चुनाव में संयुक्त रूप से आने का दम भर रहे हैं तो इसका असर तो होगा ही। नीतीश कुमार की सोशल इंजीनियरिंग डगमगा सकती है, क्योंकि वामपंथियों का कैडर वोट उन्हीं दबे कुचले लोगों से बनता है जिस नीतीश कुमार लंबे समय से महादलित के नाम पर साध रहे हैं। इसका कुछ हद तक प्रभाव लालू यादव पर भी पड़ेगा क्योंकि लालू यादव भी गरीबों के रहनुमा बनने का दावा करते हुये इसी तबके को साधते रहे हैं। वामपंथियों का एक मंच पर आना इन दोनों नेताओं के लिए चिंता का विषय है।
सीपीआई (एमएल) के नेता दीपांकर भट्ठाचार्य भी वामपंथियों की एकता से काफी उत्साहित दिख रहे हैं। उनका कहना है कि बिहार के हर कोने में वामपंथियों की मौजूदगी आज भी बरकार है। इनको सक्रिय करने की जरूरत है। यदि इस चुनाव में ये सक्रिय हो जाते हैं तो निश्चिततौर पर बिहार का नक्शा बदल जाएगा। मोदी सरकार पूंजीपत्तियों की गोद में बैठी हुई है। यह जनविऱोधी सरकार है। बिहार का चुनाव उन तमाम लोगों के लिए उम्मीद की किरण है जो इस फासीवादी सरकार के खिलाफ है और लालू और नीतीश कुमार के अवसरवादी गठजोड़ से उबे हुये हैं।

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