प्रमोद दत्त,पटना.चुनाव के अवसर पर विभिन्न पार्टियों के लिए ‘घोषणा पत्र’ जारी करना अब मात्र औपचारिकता रह गया है. यही कारण है कि सीटों के तालमेल और उम्मीदवारों के चयन में उलझी कुछ राजनीतिक पार्टियों ने तो प्रथम चरण के मतदान से मात्र दो दिन पहले जारी किया अपना घोषणा पत्र. खास बात यह है कि सभी पार्टी के नेताओं के चुनावी भाषण और दल के घोषणा पत्र में कोई तालमेल नहीं दिखता है. गौर करने वाली बातें यह भी है कि हमेशा साझा घोषणा पत्र जारी करने वाले एनडीए के घटक दलों ने अपना अलग-अलग घोषणा पत्र जारी किया तो दूसरी ओर परम्परा से विपरीत महागठबंधन में शामिल दलों राजद, जदयू और कांग्रेस द्वारा साझा कार्यक्रम (घोषणा पत्र) जारी किया गया.
यह अलग बात है कि राजद, जदयू, कांग्रेस द्वारा जहां पहले विस्तृत घोषणाएं होती थी, वहां इस बार महागठबंधन द्वारा संक्षिप्त ‘साझा कार्यक्रम’ घोषित हुआ. प्रेक्षकों का मानना है कि अलग-अलग एजेंडे की कॉमन बातों को तैयार किये जाने के कारण महागठबंधन की साझा कार्यक्रम संक्षिप्त हो गया. जिस प्रकार महागठबंधन द्वारा नीतीश कुमार को नेता स्वीकारा गया, उसी प्रकार नीतीश कुमार के विज़न (न्याय के साथ विकास को भी) को भी साझा घोषणा पत्र में प्राथमिकता दी गई. साझा कार्यक्रम में विकसित बिहार के लिए नीतीश कुमार के सात निश्चय (सूत्र) को प्रमुखता दी गई है. इन सात सूत्रों में 49,800 करोड़ रूपये के अनुमानित खर्च पर बिहार के युवाओं को आर्थिक सहायता देकर आत्मनिर्भर बनाने के लिए 5 महात्वाकांक्षी योजना की शुरूआत की और सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण का वादा प्रमुख है. इसके अलावा हर घर बिजली (अनुमानित खर्च 55,600 करोड़), हर घर नल का जल ( अनुमानित खर्च 47,700 करोड़) घर तक पक्की गली-नालियां ( अनुमानित खर्च 47,700 करोड़), शौचालय निर्माण, घर का सम्मान ( अनुमानित खर्च 28,700 करोड़) और अवसर बढ़े, आगे पढ़े के तहत 5 नए मेडिकल कृलेज, सभी अनुमंडल में एएनएम स्कूल व औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान आदि तकनीकि शिक्षा ( अनुमानित खर्च 10,300 करोड़)को बढ़ावा देने का वादा किया गया है.
महागठबंधन के साझा कार्यक्रम में इसके अलावा भाजपा का विरोध, आरक्षण और विशेष राज्य का दर्जा को प्रमुखता दी गई है. घोषणा पत्र में कहा गया है “महागठबंधन पूरी तरह आश्वस्त है कि नीतीश कुमार, जिन्हें आम सहमति से महागठबंधन का नेता चुना गया है, उनमें इस चुनौतीपूर्ण काम को करने की पूरी क्षमता और योग्यता है. उनका पुराना ट्रैक रिकॉर्ड और काम करने का अनुभव इस तथ्य के पुख्ता प्रमाण हैं कि वह पूरी जिम्मेदारी से सफलतापूर्वक इस दायित्व को पूरा करेंगे.”
महागठबंधन के घोषणा पत्र में राजद व कांग्रेस की तुलना में नीतीश विज़न को अधिक प्रमुखता दी गई है. लालू प्रसाद द्वारा उठाए गए जातीय जनगणना को इसमें शामिल करते हुए कहा गया है “महागठबंधन की मांग है कि जातिगत जनगणना को केंद्र सरकार तत्काल जारी करे. साथ ही जनसंख्या के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था की जाए. निजी क्षेत्रों में भी आरक्षण का प्रावधान किया जाए. इसके लिए हम केंद्र सरकार पर लगातार दबाव बनाए रखेंगे.” इसके अलावा घोषणा पत्र में यह चेतावनी भी दी गई है कि आरक्षण की स्वीकृत व्यवस्था से रत्ती भर भी छेड़छाड़ की किसी भी संभावना का महागठबंधन प्रखर विरोध करेगा. इस बात का अहसास है कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक सुनियोजित रणनीति अपना कर आरक्षण की इस व्यवस्था को खत्म करना चाहते हैं.
दूसरी ओर भाजपा ने अपने घोषणा पत्र (विकास एवं विश्वास का दृष्टि पत्र) में नीतीश कुमार पर प्रहार करते हुए कहा है कि बिहार आज फिर उसी जगह खड़ा है जहां साल 2005 में खड़ा था. तब बिहार में व्याप्त जंगलराज के खिलाफ उत्पन्न जनाक्रोश ने सत्ता परिवर्तन के संकल्प के साथ मतदान कर विकास, सुरक्षा और बिहार की अस्मिता की रक्षा के वादे के साथ खड़े भाजपा गठबंधन को सरकार बनाने और चलाने का स्पष्ट जनादेश दिया था. 5 वर्षों के कार्यकाल में भाजपा गठबंधन की सरकार पूरी ताकत से जनाकांक्षा की कसौटी पर खरा उतरने की कोशिश की. परिणामस्वरूप राज्य में सुरक्षा का वातावरण बना और बिहार विकास की राह पर चल पड़ा. 5 वर्षों में एनडीए सरकार ने जो साख और विश्वसनीयता अर्जित की उसके बल पर 2010 में एनडए सरकार को भारी बहुमत हासिल हुआ. लेकिन इस बीच मिली ख्याति से जन्मे अहंकार और प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा के जुनून के कारण नीतीश कुमार ने जनादेश से विश्वासघात करते हुए अकारण और अचानक भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया. भाजपा से अलग होने तथा लालू प्रसाद से किये गए अवसरवादी और सिद्धांतहीन गठजोड़ के बाद बिहार विकास की राह से गया और एक बार फिर नकारात्मक कारणों से चर्चा में आ गया. विकास की धार कुंद हो गई और साढ़े सात साल की विकास दर आधी हो गई.
बदलते राजनीतिक समीकरण के लिए नीतीश कुमार को जिम्मेवार मानते हुए भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में प्रदानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 1.65 लाख हजार करोड़ की विशेष पैकेज की चर्चा करते हुए कहा है कि केंद्र का आभार मानने की बजाए नीतीश कुमार और उनके साथी इसे नकारने में लगे हैं. सच यह है कि नीतीश कुमार और उनके साझेदारों का चेहरा बेनकाब हो गया है और बिहार की जनता ने उनकी राजनीति को नकार दिया है.
भाजपा ने घोषणा पत्र में वादा किया है कि भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए नए सतर्कता कोर्ट की स्थापना की जाएगी ताकि भ्रष्टाचार संबंधी केसों का निपटारा अल्पाविधि में हो सके. कानून व्यवस्था को चुस्त करने के लिए प्रत्येक 5 लाख आबादी वाले शहरों में पुलिस कमिश्नर की व्यवस्था करने एवं वित्तीय और साइबर अपराध पर काबू करने के लिए विशेष पुलिस फोर्स के गठन की घोषणा की गई है.
भाजपा ने कृषि एवं पशुपालन की व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए अनेक वादे किये हैं. जिनमें कृषि विभाग का नाम बदलकर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, हर वर्ष कृषि पर पृथक बजट पेश करने, प्रत्येक किसान के खेतों की मिट्टी जांच करने, दलहन-तेलहन फसलों को प्रोत्साहित करने की विशेष योजनाओं, वेटनरी एवं फिशरीज़ के अलावा, होर्टीकल्चर, फूड प्रोसेसिंग कॉलेजो की स्थापना का वादा किया गया है. गौ संवर्धन के लिए ‘गौ पालन निदेशालय’ के गठन व साथ-साथ पंचगव्य शोध व अन्य सुविधाओं के लिए गौ विज्ञान संस्थान की स्थापना का वादा किया गया है.
इसके अलावा हर गांवों में एक साल के अंदर बिजली पहुंचाने, जिला अनुमंडल प्रखंड का पुर्नगठन करने, सभी भूमिहीनों को 5 डिसमिल वासगीत जमीन देने, मेधावी छात्रों को लैपटॉप एवं मैट्रिक व इंटर पासकरने वाली मेधावी छात्राओं को मेरिट के आधार पर स्कूटी देने, प्रत्येक गरीब परिवार को प्रति वर्ष एक जोड़ा धोती-साड़ी देने, दलित-महादलित टोले में रंगीन टीवी देने, युवाओं को रोजगार, व्यवसाय व उद्योग के लिए कारगर ‘सिंगल विंडो सिस्टम’ लागू करने आदि अनेक लुभावने वादे किये गए हैं. घोषणा पत्र के साथ-साथ बिहार के विकास के लिए प्रधानमंत्री द्वारा दिये गए विशेष पैकेज के संदर्भ में संकल्प पत्र भी जारी किया गया, जिसमें कहा गया कि बिहार में सरकार बनने के बाद इसका समुचित एवं सार्थक उपयोग हो ऐसा भाजपा का निश्चय है.
एनडीए के अन्य घटक दलों लोजपा और हम द्वारा अलग-अलग घोषणा पत्र जारी किया गया. हम के घोषणा पत्र में पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी द्वारा लिये गए प्रमुख 34 फैसले को लागू करना का वादा किया गया है. इन 34 फैसलों में कमजोर वर्ग, अनुसूचित जाति एवं जनजाति, अल्पसंख्यक, महिलाएं, गरीब, सवर्ण व किसानों के लिए कई निर्णय लिए गए थे. हम के घोषणा पत्र में बिहार चुनाव के प्रमुख मुद्दों की चर्चा करते हुए कहा गया है ‘जो सारे मुद्दे देश के सामने हैं, अधिकांश वही मुद्दे बिहार राज्य के हैं, परंतु इनकी गंभीरता अधिक है. बिहार में साक्षरता, प्रति व्यक्ति आय, प्रति व्यक्ति बिजली खपत, प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य सेवाएं, प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि की उपलब्धता, जनसंख्या अनुपात में मेडिकल, इंजीनियरिंग कॉलेज व विश्वविद्यालय राष्ट्रीय औसत से कम हैं. बिहार राज्य के बंटवारे से खनिज पदार्थ और उससे जुड़े कल कारखाने शून्य हैं. फलतः बेरोजगारी और गरीबी अधिक है. बिहार राज्य के विकास की सिर्फ दो पूंजी है एक मानव संसाधन और दूसरा कृषि और कृषि आधारित उद्योग. इन दो मुद्दों से जुड़े हुए अनेक सवाल हैं.’
लोजपा ने अपने घोषणा पत्र में राजनीतिक पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए कहा है कि बिहार में पिछले 25 वर्षों से लालू प्रसाद, राबड़ी देवी और नीतीश कुमार की सरकारें सत्ता में थी. इन 25 वर्षों में राजद का शासन हो या जदयू का, इन सबने बिहार को आगे बढ़ाने की बजाए पीछे धकलने का काम किया है. इन ढ़ाई दशक में देश के कई राज्य विकास की नई ऊचाईयां छूने लगे. पर बिहार के लोग बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, सीवर, सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसते रहे. अपील की गई है कि नए बिहार के निर्माण के लिए राजद-जदयू की भ्रष्ट सत्ता को हटाकर लोक जनशक्ति पार्टी और उनके सहयोगी दलों को अपना मत और समर्थन दें.
अपने घोषणा पत्र में लोजपा ने बिहार के विकास के लिए हर क्षेत्रों, बुनियादी सुविधाएं, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा, कानून व्यवस्था, सड़क, भ्रष्टाचार उन्मूलन, कृषि, रोजगार, पर्यटन, महिला कल्याण उद्योग, अल्पसंक्यक कल्याम आदि मामले में अपना नजरिया प्रस्तुत करते हुए कई वादें किये हैं. अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों के संपूर्ण विकास की चर्चा करते हुए लोजपा ने वादा किया है कि मुसहर समुदाय के लोगों के लिए के.वी. सक्सेना कि रिपोर्ट को लागू किया जाएगा. प्रत्येक प्रखंड में 100 बेड का छात्रावास की व्यवस्था होगी. इसके अलावा दलितों की घनी आबादी वाली बस्तियों को अंबेडकर बस्ती के रूप में विकसित करने, सरकारी नौकरियों में बैकलॉक रिक्तियों को अभियान चलाकर भरने, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के भूमिहीनों को 10 डिसमिल भूमि उपलब्ध कराने, विस्थापितों के पुनर्वास की व्यवस्था, एस सीपी और टी एस पी के तहत मंत्रालयों के विभागों में क्षेत्रानुसार बजट प्रावधान करने आदि अनेक वादे किये गए हैं.
2015 के आम चुनाव के अवसर पर महागठबंधन द्वारा जारी साझा कार्यक्रम और विगत 2005 के चुनाव के बाद एनडीए द्वारा जारी साझा कार्यक्रम के अध्ययन से यह रोचक तथ्य सामने आता है कि 2005 में जहां एनडीए ने नीतीश कुमार के नेतृत्व पर भरोसा जताया था वहीं बदलते राजनीतिक समीकरण के बीच दस वर्षों बाद महागठबंधन भी नीतीश कुमार के नेतृत्व के भरोसे है. 2005 के एनडीए के साझा कार्यक्रम ( सुशासन के कार्यक्रम) के अनुसार “अक्टूबर-नवंबर’ 2005 में संपन्न हुए बिहार विधानसभा के चुानवों में बिहार की जनता ने जाति और मजहब की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर एक नए बिहार के निर्माण के लिए अपनी प्रतिबद्धता का इजहार किया. राजग ने धर्मनिरपेक्षता, जाति निरपेक्षता व सामाजिक न्याय के साथ आधुनिक, विकासशील और गौरवशाली बिहार का प्रस्ताव बिहार की जनता के सामने रखा था.राजग का नारा था – ‘नया बिहार नीतीश कुमार.” जनता ने विशाल समर्थन, अपने जीवन में बेहतरी और खुशहाली के लिए दिया है. यह नकारात्मक नहीं, सकारात्मक समर्थन है और इसलिए इसने राजग जिसमें बिहार में जदयू और भाजपा है, की जिम्मेदारी कामों बढा दी है. जनता का यह समर्थन बिहार ने पुर्ननिर्माण करने, विकास के मामले में फिसड्डी हो गए बिहार को विकास के पटरी पर लाने, सामाजिक सौहार्द बहाल करने और समाज के कमजोर तबके को न्याय सुनिश्चित करने के लिए मिला है.
महागठबंधन का साझा कार्यक्रम (2015) के अनुसार महागठबंधन पूरी तरह आश्वस्त है कि नीतीश कुमार जिन्हें आम सहमति से महागठबंधन का नेता चुना गया है, उनमें इस चुनौतीपूर्ण काम को करने की पूरी क्षमता और योग्यता है. उनका पुराना ट्रैक रिकॉर्ड और काम करने का अनुभव इस तथ्य के पुख्ता प्रमाण हैं कि वह पूरी जिम्मेदारी से सफलतापूर्वक इस दायित्व को पूरा करेंगे. नीतीस कुमार के नेतृत्व में विगत वर्षों में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में उल्लेखनीय काम हुए हैं. महागठबंधन नीतीश कुमार के ‘विकसित बिहार के सात निश्चय’ कार्यक्रम को सुशासन का लक्ष्य पाने के लिए स्वीकार करता है.