जहानाबाद की एक महिला को उसके ससुराल वालों ने मारा-पीटा. किसी ने उस मारपीट का वीडियो बनाकर बिहार महिला आयोग की अध्यक्ष अंजुम आरा को भेज दिया.महिला की शिकायत स्थानीय पुलिस थाने में दर्ज नहीं की जा रही थी, जब अध्यक्ष को यह बात मालूम हुई तो उन्होंने संबधित थाने में फोन कर न सिर्फ रिपोर्ट दर्ज करवाई बल्कि पुलिस ने तत्परता के साथ अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया. ऐसा सिर्फ इसलिए हुआ क्योंकि राज्य की महिला आयोग ने सक्रियता दिखाई. राज्य महिलाओं के हितों की, उनके आत्म सम्मान की, उनके स्वाभिमान की रक्षा के लिए सक्रिय बिहार महिला आयोग की अध्यक्ष अंजुम आरा से सना रहमान की खास बातचीत….
महिला आयोग में किस तरह के अत्याचार की शिकार महिलाएं गुहार लगाए ?
— किसी महिला के साथ कानून या संविधान का हनन किया गया हो, उनका शारीरिक, मानसिक शोषण किया गया हो, उन्हें किसी प्रकार से प्रताड़ित किया गया हो, घरेलू हिंसा, कार्यालय हिंसा आदि की शिकार महिलाओं की हम मदद करते हैं..
आप किस तरह से उनकी समस्याओं का निवारण करती हैं ?
— शुरू से उनकी सारी बातें सुनी जाती है. प्राथमिक तौर पर जैसे पुलिस द्वारा अगर कम्प्लेन नहीं लिखा गया है तो उस पर संज्ञान ली जाती है सम्बंधित अधिकारियों को तुरंत कार्रवाई का निर्देश दिया जाता है, फिर केस की मॉनिटरिंग की जाती है और फिर क्रमबद्ध तरीके से उनकी समस्याओं का निपटारा किया जाता हैं.
इंसाफ दिलाने के बाद क्या पीड़िता का केस स्वतः बंद कर दिया जाता है या भविष्य में भी उनसे सम्पर्क में आयोग की टीम रहती है?
— नहीं, इंसाफ दिलाने भर का हमारा काम नहीं है. आयोग अगले 5-6 महीने तक फॉलोअप करता रहता है. जब तक मामला सुलझ नहीं जाता तब तक हम पीड़िता के सम्पर्क में रहते हैं. पीड़िता के कहने पर और खुद भी संतुष्ट होने पर ही आयोग किसी भी केस को बंद करता है.
अगर कोई महिला किसी पर कोई गलत आरोप लगा दे तो आयोग क्या करता है?
— नहीं, मैं दावे के साथ कह सकती हूं ऐसा नहीं हो सकता है. अब तक ऐसा कोई मामला मेरी नजर में नहीं आया है. कोई भी महिला फर्जी शिकायत लेकर नहीं आ सकती है, उनके साथ परेशानियां होती हैं, हिंसा का शिकार होने पर ही वो आयोग का दरवाजा खटखटाती हैं. हां मैं यह जरुर मानूंगी कि जितना उसने बताया उससे कम उसे प्रताड़ित किया गया हो. मारपीट के आरोप में वो थप्पड़ों की संख्या गलत बता सकती हैं, जैसे अगर उन्हें 1 थप्पड़ मारा हैं तो 5-6 कह सकती हैं लेकिन फिर भी वो हिंसा का शिकार हुईं हैं कम हो या ज्यादा हो.
अन्य राज्यों के मुकाबले बिहार महिला आयोग क्यों पिछड़ा हुआ हैं?आरोप है कि महिला दिवस और महिला सुरक्षा सप्ताह का आयोजन भर करता है यहां का आयोग?
— नहीं, मैं ऐसा नहीं मानूंगी. मैं आपको बता दूं कि अन्य राज्यों के मुकाबले हमारे यहां की महिलाएं ज्यादा जागरूक हैं इन सब मामलों में. दूसरे राज्यों के मुकाबले हमारे यहां ज्यादा शिकायतें आती हैं. यहां की महिलाएं जानती है कि आयोग हमारी समस्याओं का निपटारा जल्द से जल्द करेगा और यह सब आयोग की सक्रियता का ही परिणाम हैं. और जहां तक बात है महिला दिवस और महिला सुरक्षा सप्ताह की तो मैं आपको बता दूं कि महिला दिवस के दिन महिला आयोग कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं करवाता है. महिलाओं के अधिकार को लेकर हम किसी दिन का इंतजार नहीं कर सकते, हमें बस शोषित महिलाओं को उनका उचित हक दिलाना हो चाहे वो किसी भी दिवस या किसी भी सप्ताह हो.
राज्य सरकार क्या सहयोग कर रही है?
— बिहार की सरकार अन्य राज्यों के मुकाबले महिलाओं को सशक्त करने में काफी जागरूक है. राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महिला सशक्तिकरण के हितैषी हैं. पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को 50ः का आरक्षण देना इसका परिचायक है. बिहार एकमात्र ऐसा प्रदेश है जो महिलाओं के हक लिए पहला कदम बढ़ाया हैं. नहीं तो पूरे देश में आज तक महिलाओं को समान अधिकार नहीं मिला है. बस कहने के लिए इसे आधी आबादी की संज्ञा दी गई. महिलाओं की सदैव हकमारी हुई है.
महिला आयोग की भविष्य की योजना?
— हम लोग ‘महिला आयोग आपके द्वार’ कैम्पेन चला रहे हैं इसका प्रथम चरण पूरा हो गया है अब दूसरे चरण की तैयारी है. इसके अंतर्गत हम लोग राज्य भर के गांव-गांव में जाकर महिलाओं को उनके हक के प्रति जागरूक करेंगे, उन्हें उनके कानून की तालीम देंगे. इन सबके अलावा लड़कियों के साथ इव टीजिंग की जो आम शिकायतें हो रहीं हैं उसके लिए उन्हें जागरूक करेंगे. महिलाएं जब तक अपनी चुप्पी नहीं तोड़ेंगी तब तक देश का कोई कानून उनके लिए कुछ नहीं कर सकता है. अगर कोई महिला अपने ऊपर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाती हैं तो उसका समर्थन हर ओर से होता है. सरकार, समाज, नौकरशाह सब उसके हिमायती बन जाते हैं. हमें महिलाओं को आवाज उठाना सिखाना हैं. महिलाएं अपनी हकमारी और हिंसा पर चुप नहीं बैठे इसके विरूद्ध आवाज दें.