डा.मनोज कुमार (काउंसलिंग साइकोलोजिस्ट)
पुष्पिता की मम्मी आश्चर्यचकित है जो बच्ची कोई काम करने में नाक-भौं सिकोड़ लेती थी. आजकल बड़ी स्फूर्ति से हर काम को निपटा रही है. हमेशा उठा-पटक करने वाला मुनचुन भी खामोश सा रहता है, पापा के पूछने पर विनम्र जवाब दे रहा है खाना कम और शौचालय में ज्यादा रहता है. परेशानी मम्मी को इस बात से है कि स्कूल से आने के चार-पांच घंटे बाद ही वह पुराने ढर्रे पर आ जाता है.
दरअसल स्कूल गोइंग बच्चों में परीक्षा का दबाव कम करने के लिए इरेजर का इस्तेमाल किया जा रहा है. दिखने में रोजमर्रा का यह सामान नशे के रूप में बच्चों के बीच प्रचलित हो रहा है. इसके शिकार 13 से 18 वर्ष के बच्चें ज्यादा हो रहे हैं. इस रसायन को बच्चें सूंघते हुए और कभी-कभी पीने में इस्तेमाल कर रहे हैं. इसे इन्हेलन्ट्स व सॉल्वेन्ट्स भी कहा गया है. कई ऐसे डियोड्रेंट, पेंट, थीनर, नेल पॉलिश रिमूवर, शू पॉलिश, हाउस होल्ड क्लीनर भी इसके साथ यूज किये जा रहे हैं ताकि दोहरा नशा मिले. अधिक मात्रा में लेनेवाले बच्चों के मस्तिष्क में कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होने लगती हैं और कई बार पहली बार में ही इरेजर का सेवन बच्चों को असमय काल के गाल में ले जाता है.
पहचानें अपने बच्चों को
बच्चों को इन रसायनों को लेने का हथकंडा अलग-अलग है. कई बच्चें इरेजर का सेवन बैग में डालकर खींचते हैं. कुछ बच्चें किताबों के पन्नों के बीच में डालकर इसको सूंघते हैं. इनकी यह आदत दिन में कई बार होती है. कुछ बच्चें इन रसायनों को एल्कोहल संग पीते है और कई ऐसे शिकार है जो इन्हें गर्म करके पीते है. गंभीर रूप से इरेजर या व्हाइटनर लेने वाले बच्चें आजकल इंजेक्शन से भी इस्तेमाल करने से गुरेज नहीं कर रहे.
दुष्प्रभाव से जाने बच्चों का व्यवहार
व्हाइटनर(इरेजर) का लगातार इस्तेमाल करने वाले बच्चें शुरु में मस्त रहने लगते हैं और इसका आदी बनने पर पस्त. इस तरह के बच्चें सुस्त नजर आते हैं. आप पायेंगे कि आपका बच्चा स्कूल से आकर ऊंघ रहा है. कई बार उत्तेजनाओं से भरे रहते हैं. कई बार अचानक मिर्गी के दौरे पड़ने लगते हैं. कई बार कम मात्रा में ले रहे बच्चें आसानी से पकड़ मे नहीं आते हैं. उनके व्यक्तितिव में परिवर्तन आ जाता है, ऐसे लोगों को लगने लगता है. आवाज में लड़खड़ाहट, निर्णय नहीं ले पाना, विचित्र रूप से ध्यान आकर्षित कराना. कई मजबूत इच्छाशक्ति वाले बच्चें दो-चार बार सेवन कर इसका इस्तेमाल बंद कर देते हैं. इसके साथ ही इनमें अपच, शरीर में ताकत ना मिलना, मांसपेशियों में जकड़न आदि समस्याएं चालू हो जाती है नतीजतन यह दुबारा व्हाइटनर जैसे मादक पदार्थों का सेवन करने लग जाते हैं.
कैसे करें इनकी पहचान
शिक्षकों और अभिभावकों को इस दिशा में पहल करनी चाहिए. सबसे पहले आप अपने बच्चों के कपड़े सूंघे, मुंह को सूंघे. कभी-कभी बच्चों के बैगों को भी सर्च किया जा सकता है. यह भी देखना चाहिए कि आपके बच्चें की आवाज में तब्दीली तो नहीं आ रही है. उनके स्वर में लड़खड़ाहट तो नहीं है. आप बच्चों के शौचालय में बैठने की समय से भी अंदाजा लगा सकते हैं कि आपका बच्चा इन सब लतों से दूर है या नहीं. सामान्यतः नशे के शिकार बच्चों के नाक से पानी की धार निकलती रहती है और चेहरे पर फोड़े-फुंसी होने लगते हैं. स्कूल से भागना और बंक मारना, झूठ बोलना, गंदा रहना, जल्दी किसी से उलझना भी इस बात की गवाही है कि आप सतर्क हो जाएं.
संभव है समाधान
इस तरह के बच्चों को यथा संभव ईलाज जरुरी है. हालांकि इस तरह के बच्चों को दवा से शुरुआती समय में दूर रखकर व्यवहार परिवर्तन कराने पर जोर दिया जाता है. काउंसिलिंग व मनोचिकित्सकीय विधियां काफी कारगर हैं. जरुरत के मुताबिक परिवार दोस्तों और संबंधियों के साथ भी थेरेपी दी जाती है.