आलोक नंदन
राजस्थान से आकर बिहार के विकास की भाषा अंग्रेजी को बनाने के लिए फिल्ममेकर और शिक्षा विशेषज्ञ नावेद अख्तर जेहाद छेड़े हुये हैं. जीवन के कई पायदानों से गुजरने के दौरान जब उन्होंने महसूस किया कि देश की छोटी छोटी संस्कृतियों से निकल कर शिक्षा या रोजगार के क्षेत्र में कदम बढ़ाने वाले युवा कमजोर अंग्रेजी की वजह से मात खा रहे हैं तो भला विकास की धारा में ग्लोबल स्तर कैसे बहेंगे. इस ग्लोबल युग में अपनी चमक बिखेरने के लिए बिहार के हर युवा को क्लासिक अंग्रेजी आनी चाहिए. ऐसा होने के साथ ही बिहार विकास की स्वाभाविक करवट लेगा. न सिर्फ बिहार में बल्कि पूरी दुनिया में
बिहारियों की मांग बढ़ जाएगी.
एक सहज बातचीत के दौरान नावेद अख्तर फरमाते हैं, “बिहारियों की प्रतिभा का मैं कायल हूं. इनका जवाब नहीं है. बस अंग्रेजी में मात खाते हैं. मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था. सबकुछ जानते समझते हुये भी लंबे समय तक जुझना पड़ा इसे भाषा से. सारी किताबें अंग्रेजी में होती थी. अब तो ग्लोबलाइजेशन का दौर है. अंग्रेजी के बिना तो आगे बढ़ा ही नहीं जा सकता है.
बिहार चुनाव में अंग्रेजी को पार्टी मैनिफेस्टों में शामिल करने के लिए बिहार के तमाम राजनीतिक दलों का दरवाजा खटखटाने वाले नावेद अख्तर आगे कहते हैं, “आप कॉल सेंटर या बीपीओ सेक्टर में जाकर देखिये, आपको बहुत कम बिहारी मिलेंगे. क्योंकि यहां का सारा काम अंग्रेजी में होता है. दुनिया की व्यापारिक भाषा अंग्रेजी है, तकनीक की भाषा है अंग्रेजी है तो फिर इससे दूर रह कर आप विकास कैसे कर सकते हैं. इस भाषा को नहीं जानने की वजह से बहुत बड़ी संख्या में बिहार युवा जाब मार्केट से बाहर है. आप बिहार में तकनीकी संस्थान लाना चाहते हैं, शोध केंद्रों की स्थापना करना चाहते हैं, तो क्या इनका मकदस अंग्रेजी के बिना पूरा पाएगा. अंग्रेजों हुकूमत में अंग्रेजी और पर्शियन पढ़ना जरूरी था. इसके साथ ही आप क्षेत्रीय भाषा पढ़ सकते थे. अंग्रेजी भाषा में दुनिया के साथ कदम ताल न करने की वजह से आप आप क्षेत्रिय भाषा से भी दूर होते जा रहे हैं. अधकचरी संस्कृति में पढ़कर आप वेशभूषा और हावभाव में नकल करते हुये अपनी खुद की भाषा को लेकर हीनता का शिकार होते हैं. ग्लोबल दुनिया की विशेषता है कि स्थानीय भाषाओं के साथ अंग्रेजी को जोड़ कर आगे बढ़ रही है. पंजबा के युवा फर्राटेदार पंजाबी बोलते हुये अंग्रेजी बोलते हैं, दूसरों सूबों के युवा भी इसी तर्ज पर कारपोरेट जगत में आगे निकल रहे हैं. फिर बिहारी युवा भी क्यों मैथिली, भोजपुरी, मगही आदि बोलते हुये बोलते हुये अंग्रेजी में उनसे दस कदम आगे रहे ?
आईआईटी के तथ्यों को सामने रखते हुये वह कहते हैं, “ पिछले कुछ वर्षों में आईआईटी के 200 से अधिक छात्र सिर्फ अंग्रेजी न आने की वजह से आईआईटी छोड़ने पर मजबूर हुये हैं, इनमें बिहारी छात्रों की संख्या अधिक है. अब तो बिहार के लोगों को संभल जाना चाहिए. समय बदल चुका है और सिर्फ भाषाई आधार पर यदि पिछड़ रहे हैं तो यह किसी भी नजरिये से ठीक नहीं है. विकास की गाड़ी को दौड़ाने के लिए अंग्रेजी बिहार को अंग्रेजी तो चाहिए.”
नावेद अख्तर आगे फरमाते हैं, यदि वाकई में बिहार को विकास के उच्च स्तर पर ले जाना है तो गांव, तहसील, ब्लाक और जिला स्तर पर अंग्रेजी सीखाओं मुहिम को युद्ध स्तर पर ले जाना होगा. विभिन्न् तरह के प्रोजेक्टों पर यदि खर्च किया जा सकता है तो फिर इस मुहिम पर क्यों नहीं.
अपनी इस मुहिम पर नावेद अख्तर अकेले नहीं है, उनके साथ पूरी एक टीम है, जिसमें दूसरे सूबों के फिल्म मेकर, वकील, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं. इस टीम के अहम सदस्य हैं, फ़िल्म दृ प्लास्टिक काऊ के निर्माता कुनाल वोहरा, प्रख्यात शिक्षाविद् और इलेक्ट्रॉनिक उर्दू प्रोग्राम के निर्माता अब्दुल समद इब्राहिम, अतीक़ साजिद, आर. के. चन्द्रिका और शम्स ख्वाजा. अपनी टीम के साथ मिलकर आने वाले समय में नावेद अख्तर इस मुहिम को और मजबूती से चलाने की मंशा रखते हैं.
पिछले दो दशक में दुनिया तेजी से बदली है. इसके साथ ही बिहारियों का पलायन भी हुआ है. यह पलायन दो स्तर का है, बिहार में रिक्शा चलाने वाले, खेतीकरने वाले मजदूर काम की तलाश में बड़े शहरों की तरफ निकलें हैं तो बड़ी संख्या में शिक्षा और रोजगार हासिल करने के लिए बिहारी छात्र भी यहां से निकले हैं. यदि पांच-दस फिसदी छात्रों को छोड़ दिया जाये तो तकरीबन नब्बे फीसदी छात्रों को अंग्रेजी की वजह से अपनी रफ्तार में ब्रेक लगाना पड़ रहा है. नावेद अख्तर फरमाते हैं, यदि शुरु से ही बिहारी बच्चों को अंग्रेजी से अच्छी तरह से रूबरू करा दें तो फिर आगे का मैदान मारने से इन्हें कोई नहीं रोक पाएगा. और ऐसा सहजता से किया जा सकता है, बस सिर्फ इस जरूरत को समझ जाये.
बंगाल में नवजागरण लाने में अंग्रेजी की बड़ी भूमिका थी. तकरीबन 17 भाषाओं का ज्ञाता राजा राम मोहन राय इसके अग्रदूत बने थे. हर अंग्रेजी को बंगाल के हर बच्चे तक पहुंचाने के लिए उन्होंने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था. उस वक्त अंग्रेजी सीखने को लेकर बंगाल में एक लहर सी चल पड़ी थी. और जब अंग्रेजी के माध्यम से ही बंगाली युवाओं को अंग्रेजी के लोकप्रिय कवि शैली की कविताओं से सामना हुआ तो उनके जुबानों से स्वतंत्रता के गीत फूट पड़े. जान स्टुअर्ट मिल की रचनाओं तो उन्हें स्वत्रंता का दीवाना ही बना दिया. बावजूद इसके उनकी मात्र भाषा बंगाली उनके रगों में पूरे ओज और नजाकत के साथ पुष्पित और पल्वित होती रही. बिहार में अंग्रेजी के प्रचार प्रसार को लेकर नावेद अख्तर भी नव जागरण लाने की बात करते हुये, यहां के समाज के हर तबके को अपने साथ जोड़ रहे हैं.