सिज़ेफ्रेनिया यानि द ब्यूटीफुल मांइड असीमित तजुर्बों का मालिक

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PSYCO SIGN 3

डा. मनोज कुमार (काउंसलिंग साइकोलोजिस्ट)

हममें से कितनों को याद है फिल्म लगे रहो मुन्ना भाई  का वह चरित्र, जिसमें नायक को गांधी जी दिखते हैं. वह उन्हीं के मार्गदर्शन से कार्य करता है. यह तो रील लाइफ थी, लेकिन अगर रियल लाइफ में कोई इंसान यह दावा करें कि उसे कोई महापुरूष दिखाई दे रहें हैं, उनकी आवाज सुनाई पड़ रही है. कई बार शरीर में किसी देवी-देवता का प्रवेश होना और इसके बाद अंधविश्वास का पनप जाना. दरअसल विनिता के पति में भी ये सारे वाक्ये हो रहें हैं. कभी-कभी शक  इतना बढ़ जाता है कि बच्चों के सामने ही मार-पीट होने लगती है. यह तो एक सभ्य परिवार का दृश्य है लेकिन एक परिवार ऐसा भी  जो इन सारे लक्षणों से पीड़ित व्यक्ति को पूजने लगा है. वास्तव मे यह गंभीर बीमारी सिजेफ्रेनिया (मनोविदालिता) है जो बड़ी तेज़ी से भारत में पसर रहा. वैसे तो इस मानसिक बीमारी की गंभीरता सागर से भी विशाल हा. परिवार के किसी एक सदस्य को हो जाए तो समाजिक और आर्थिक, पारिवारिक नुकसान की बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है. लेकिन सकारात्मक लक्षणों से पीड़ित व्यक्ति पीढ़ियों को आबाद कर देता है.इसलिए ही इस बीमारी को “द ब्यूटीफूल माइंड” भी कहते हैं.

क्या है द ब्यूटीफुल माइंड(सिजेफ्रेनिया)

यह एक गंभीर मानसिक बीमारी है जिसकी शुरूआत 15 साल की उम्र में हो जाती है ज्यादातर इसके शिकार 15-35 साल के लोग हो रहे हैं. दरअसल, इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के मन में शक की अधिकता हो जाती है. उसकी यह लत व्यवहार में शामिल हो जाता है जिसका असर उससे जुड़े लोगों पर होने लगता है. अक्सर लोग इस बीमारी से जूझ रहे लोगों से लड़ बैठते हैं. पॉजीटिव लक्षणों वाला व्यक्ति अपनी क्षमता से अधिक भी कार्य करने लगता है और जीवन की ऊँचाइयां प्राप्त करता है.

लक्षण-

          इस बीमारी से जूझ रहा व्यक्ति काफी तेज़-तर्रार भी हो सकता है. अविश्वसनीय कार्यों में रूचि लेना, जीवन के हर मोड़ पर विभ्रम में जीने लगता है. शक की अधिकता, स्वयं को महान या खुदा का दूत समझना,किसी देवीय शक्ति का वश में कर लेना,सकारात्मक लक्षणों में बार-बार असफल होने पर भी हार न मानना. अपने दुश्मनों पर विजय प्राप्त करने की सोच. छात्र जीवन में असंभव मेहनत करना. नाकारात्मक लक्षणों में अवसाद से घिरे रहना.बार-बार आत्महत्या का प्रयास करना. शक की वजह सो किसी का खून तक कर देना. नशा करना, मारपीट, पति-पत्नि में शक की अधिकता. तथा स्वयं के पूरे परिवार को समाजिक-राजनैतिक आधार पर बदनामी पर तुल जाना.

कारण-

          यह बिमारी मस्तिष्क में डोपामीन के स्तर में हुई गड़बड़ी की वजह से होती है. अध्यनों में पाया गया है कि बचपन से ही लगातार उपेक्षित बच्चे इसके शिकार जल्दी होते है. आनुवंशिकता भी इस बीमारी का प्रमुख कारण है लेकिन स्वस्थ जीवन शैली में रह रहे लोगों में इस समस्या के होने के चांसेज कम होते हैं.

उपचार-

इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के मस्तिष्क में वैधुतीय घटना निरंतर जारी रहती है अत: गंभीरता की स्थिति में जीवनपर्यंत दवा खाना पड़ सकता है.कम गंभीर जिनमें आत्महत्या के विचार ज्यादा हैं उन्हे अपने पूरे जीवन में एकाध बार रिहेबिलिटेशन (पूनर्वास) केन्द्र में रहना पड़ सकता है. दवा के साथ कांउसलिंग मरीज के लिए वरदान है. इस बीमारी में परिवार का सहयोग, समूह चिकित्सा, व्यवहार परिवर्तन व पीड़ित के रोजगार की दिशा में जोड़कर आत्मनिर्भर बनाया जाता है.

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