चुनाव में दिखेगा जाली नोटों का जलवा

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रिंकू पाण्डेय,पटना. क्राइम व कास्ट के लिए मशहूर बिहार चुनाव में इस बार जाली नोटो का जलवा भी दिखेगा. भारत के किसी राज्य में चुनाव हो जाली नोट सप्लाई करने वालों का गिरोह सक्रिय हो जाता है. बिहार विधानसभा चुनाव में जाली नोट का जलवा साफ देखने को मिलने वाला है. गिरोह सक्रिय हैं.  दलाल,सप्लायर और जाली नोटों को चलाने वाले सभी विधानसभा चुनाव में जाली नोटों के जरिए एक अलग तरह का तंत्र खड़ा करने के लिए तैयार बैठे हैं.

बिहार के सीमावर्ती इलाकों से मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक बिहार के किशनगंज,अररिया,रक्सौल के साथ मुजफ्फरपुर का इलाका जाली नोट सप्लायरों के लिए ट्रांजिट रूट बन गया है. सूत्रों की माने तो खुफिया एजेंसियों ने गृह विभाग को जो जाली नोटों को लेकर अपनी रिपोर्ट दी है उसके मुताबिक पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई, अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहिम, आतंकवादी संगठन लश्कर-तैयबा और कई दूसरे स्थानीय स्तर पर अपराधी संगठन मिलकर जाली नोटों के इस ऑपरेशन को अंजाम देने में लगे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक पांच सौ से ज्यादा की संख्या में जाली नोट सप्लायर और पाकिस्तान के खुफिया विभाग से जुड़े हुए लोग उत्तर भारत में 2000 करोड़ से ज्यादा के जाली नोट सप्लाई करने की फिराक में हैं.

यहीं नहीं बिहार विधानसभा चुनाव पर अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहीम की भी नज़रे इनायत हैं. विधानसभा चुनाव में जाली नोट के जलवे की खुफिया सूचना से गृह मंत्रालय और केंद्र सरकार दोनों के होश उड़े हुए हैं. सूत्रों की माने तो डीआरआई को इस बारे में गोपनीय सूचनाएं मिली है. खुफिया एजेंसियों ने गृह मंत्रालय को बकायदा एलर्ट किया है कि बिहार के सीमावर्ती जिलों के कई गिरोह नकली नोटों का बिहार चुनाव में इस्तेमाल करना चाहते हैं. बकायदा इसके लिए उनकी विशेष प्लानिंग की जा रही है. ट्रांजिट रूट के जरिए आने वाले इन नकली नोटों को बिहार विधानसभा चुनाव में स्थानीय छुटभैये नेताओं के जरिए खपाया जाएगा. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नेपाल के अपने नेटवर्क के जरिए मोस्ट वाटेंड अपराधी दाऊद इब्राहिम पाकिस्तान, बंग्लादेश और नेपाल के अपने नेटवर्क के जरिए बड़ी मात्रा में नकली नोट बिहार विधानसभा चुनाव में खपाने की तैयारी में है.

उल्लेखनीय है कि कुछ वर्ष पहले तक नेपाल भारत में नकली नोटों को भेजने कर सबसे बड़ा केंद्र हुआ करता था लेकिन वर्तमान में बांग्लादेश सबसे बड़ा मार्केट बन कर उभरा है. गृह मंत्रालय को मिल रही खबर के मुताबिक इन नकली नोटों का इस्तेमाल वोट के बदले नोट के लिए किया जा सकता है. इस बार का बिहार चुनाव बेहद खर्चीले होने की संभावना के चलते नकली नोटों के इस्तेमाल अधिक होने की आशंका विभिन्न एजेंसियों ने गृह मंत्रालय के समक्ष व्यक्त की है. डीआरआई इस साल की शुरूआत से अब तक 25 लाख रूपए के नकली नोट जब्त कर चुका है.

विभाग को इस बात का शक तब हुआ और विस्तृत जांच की जरूरत तब पड़ी जब 24 जून 2015 को डीआरआई की टीम ने छापेमारी कर पटना में दस लाख रूपए के जाली नोट बरामद किया. पुलिस ने आरोपी मुन्ना आलम को गिरफ्तार कर जेल भेजा. डीआरआई की टीम के मुताबिक 15 दिन पूर्व में ही मुन्ना के कारनामों के बारे में विभाग को पता चला था. इस बार जब वह बस में सवार होकर बेतिया जा रहा था तो टीम ने मुजफ्फरपुर के पास उसे गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तार मुन्ना जाली नोट गिरोह का सदस्य बताया जाता है. वह पश्चिम चंपारण के जगदीशपुर थाने का रहने वाला बताया जाता है. पूछताछ में उसने बताया कि वह कई बार जाली नोटों की खेप बांग्लादेश से बिहार ला चुका है. उसे एंटी नेशनल एक्टिविटी कानून के तहत जेल भेज दिया गया है.

इस घटना के बाद से बिहार के खुफिया तंत्र के साथ गृह मंत्रालय के अधिकारियों की भी नींद उड़ गई थी. उसके बाद बिहार चुनाव के मद्देनजर एक ऐसी टीम का गठन किया गया जो इस पूरे नेटवर्क की गतिविधियों पर अपनी नजर बनाए रखे. उपरोक्त सूचनाएं उसी टीम की विशेष रिपोर्ट का हिस्सा है जिसमें ये आशंका व्यक्त की गई है कि इस बार के बिहार बिधान सभा चुनाव में जाली नोट का जलवा देखने को मिल सकता है.

सरकार के पास जो सूचनाएं मौजूद हैं उसके मुताबिक बिहार की सीमा से सटे जिलों के अलावा पाक अधिकृत कश्मीर,बांग्लादेश के अलावा थाईलैंड और म्यांमार से नकली नोटों के खेप भेज जाने को तैयार की जा रही है. इन नोटों को नेपाल और बांग्लादेश की सीमा से अंदर भेजने की साजिश चल रही है. सबसे बड़ी बात ये है कि इन नोटों की गुणवत्ता पर कोई भी प्रश्न चिन्ह उठाने से पहले दस बार सोचेगा. साथ ही ये नोट भारतीय नोटों से इतने मिलते-जुलते हैं कि उनमें और असली नोटों में फर्क करना कई बार मुश्किल हो जाता है. एजेंसियों की पड़ताल में  ये बात निकलकर सामने आई है कि बिहार में जब भी चुनाव होता है चाहे वो पंचायत स्तर का चुनाव हो या विधानसभा इन चुनाव में नकली नोटों की खेंपें बिहार में पहुंचती हैं. बिहार के पिछड़े ईलाकों में रात के अँधेरे में मतदान से एक दिन पहले लोगों में इन नोटों को बांटा जाता है. किशनगंज में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में खुलेआम नकली नोटों का जलवा दिख चुका है. पिछले लोकसभा चुनाव में आदर्शन के विशेष संवाददाता ने किशनगंज का दौरा किया जहां रात में प्रत्याशियों के कार्यालय में नकली नोट बांटे जाते थे. एजेंसियों से मिली खबरों के मुताबिक कई चरणों में जाली नोटों का ये जलवा जारी रहता है. इसके लिए बकायदा सप्लायरों का नेटवर्क बंटा हुआ है.

नेपाल से लगने वाले एक दर्जन से अधिक बॉर्डर क्षेत्र को पुलिस और खुफिया एजेंसियों द्वारा नकली नोटों के सबसे बड़े गढ़ के रूप में चिन्हित किया गया है. सोनौली, रक्सौल, महेंद्र नगर और अहमदनगर से सबसे ज्यादा नकली नोट भारत पहुंच रहे हैं. किशनगंज से सटे गलगलिया,ठाकुरगंज और जिले के पास स्थित बंगाल का इस्लामपुर और पांजीपाड़ा नकली नोटों के तस्करों का स्वर्ग बना हुआ है. हालांकि इस नेटवर्क में एक आधुनिक बदलाव देखने को मिल रहा है. खुफिया विभाग और सीमावर्ती जिलों में समाजिक कार्य कर रहे लोगों की माने तो पहले नकली नोटों को जिन लोगों के जरिए बाजार में उतारा जाता था वो अपराधिक कार्यों में लिप्त रहते थे.  लेकिन अब चुनावों में नकली नोटों के जलवे ने इसमें एक संगठित गिरोहों को शामिल किया है जिसपर जल्दी कोई शक नहीं कर सकता. अब पढ़े-लिखे, संभ्रांत और उच्च मध्य वर्ग की आर्थिक हैसियत के दिखने वाले लोगों के जरिए जाली नोटों को बाजार में फैलाये जाने का काम हो रहा है. जिनपर दुकानदारों को आशंका नहीं होती या कम होती है.

किशनगंज के स्थानीय निवासी और समाजसेवी कृष्ण कुमार वैद्य बताते हैं कि वास्तव में भारत के दुश्मनों ने यह रणनीति बनाई है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को, जो तेजी से बढ़ रही है और दुनिया की चीन के बाद दूसरी ऐसी अर्थव्यवस्था बन गई है जहां विकास का जबरदस्त माहौल है, इससे भारत के दुश्मन आतंकवादी बहुत परेशान हो गए हैं. वह अब भारत की इस मजबूत अर्थव्यवस्था के रीढ़ की हड्डी को तोड़ देना चाहते हैं. और इसमें स्थानीय स्तर के स्वार्थी नेताओं का बहुत बड़ा हाथ है.

बिहार के कई ऐसे इलाके हैं जहां नोट के बदले वोट को अपने कब्जे में किया जाता है. इसकी शुरूआत प्रत्याशी के प्रयास से होती है जो ज्यादात्तर नए-नए राजनीति में कदम रखते हैं या फिर पहले से स्थापित हैं. बिहार चुनाव जाली नोट चलाने वाले गिरोहों के लिए एक उत्सव की तरह होता है. जहां ज्यादा जांच परख नहीं होती है. सारा कुछ काले पॉलिथिन में लिपटा होता है. ठीक वैसे ही जैसे दिपावली के मौके पर भीड़-भाड़ और खरीदारी की वजह से ज्यादात्तर लोग नोटों पर ध्यान नहीं देते और करोड़ों के नकली नोट भारतीय बाजारों में प्रवेश कर जाते हैं. यहीं कारण है कि चुनाव में नकली नोट चलाने वाले गिरोह भी सक्रिय हो जाते हैं. चुनाव में प्रत्याशियों द्वारा मतदाताओं को लुभाने के लिए रात में उनके दरवाजे और इलाके में जाकर दस्तक दी जाती है और वोट से मतदाताओं के खरीदने का सिलसिला शुरू होता है. जितनी संख्या उतने नकली नोट. ज्यादातर अनपढ़ या गंवार मतदाता इसके शिकार बनते हैं. इसलिए बिहार का चुनाव नकली नोट गिरोहों के लिए एक उत्सव की तरह आया है. अब देखना ये होगा कि विभाग इनपर लगाम कैसे लगाता है.

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