वाशिंगटन : करीब 10,000 साल पहले विलुप्त हो चुके डायर वुल्फ़ की संभावित वापसी की खबर ने विज्ञान और प्रकृति प्रेमियों के बीच गहरी उत्सुकता और बहस को जन्म दिया है।
दरअसल, अमेरिका की बायोटेक कंपनी कोलॉसल बायोसाइंसेज ने जीन एडिटिंग तकनीक की मदद से तीन पिल्लों—रोमुलस, रेमस और खलीसी—को जन्म दिया है, जो देखने में प्राचीन शिकारी डायर वुल्फ़ जैसे प्रतीत होते हैं। हालांकि, सवाल यह उठता है कि क्या ये वाकई असली डायर वुल्फ़ हैं, या सिर्फ उनकी छाया?
तकनीक और प्रक्रिया
सबसे पहले, वैज्ञानिकों ने डायर वुल्फ़ के जीवाश्म अवशेषों से DNA निकालने का प्रयास किया। इसके बाद, उन्होंने ग्रे वुल्फ़ के जीनोम में करीब 20 जीनों को संशोधित कर एक ऐसा रूप तैयार किया, जो शारीरिक रूप से डायर वुल्फ़ से बेहद मिलता-जुलता है। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप, जन्मे पिल्लों में मजबूत जबड़े, घनी फर और तीखी आंखें हैं—जो निश्चित रूप से प्राचीन शिकारी की छवि प्रस्तुत करती हैं।
इसके अलावा, कंपनी का मानना है कि यह प्रयोग विलुप्त प्रजातियों को फिर से जीवित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। आगे चलकर, वे वूली मैमथ जैसे अन्य विलुप्त जीवों पर भी काम करने की योजना बना रहे हैं, जिससे जैव विविधता को संरक्षित करने में मदद मिल सकती है।
विशेषज्ञों की राय
हालांकि, सभी वैज्ञानिक इस तकनीक से सहमत नहीं हैं। कई विशेषज्ञों का मानना है कि ये पिल्ले मूल डायर वुल्फ़ नहीं, बल्कि आनुवंशिक रूप से बदले गए ग्रे वुल्फ़ हैं। उनका व्यवहार, पर्यावरण के प्रति प्रतिक्रिया, और पारिस्थितिकी में भूमिका डायर वुल्फ़ से अलग हो सकती है।
उदाहरण के लिए, जीन एडिटिंग की खोज में अहम भूमिका निभाने वाली जेनिफर डौडना ने यह कहा कि इस तकनीक का प्रयोग चिकित्सा के क्षेत्र में करना तो उचित है, लेकिन प्रकृति में इस स्तर पर हस्तक्षेप करना नैतिक रूप से सवालों के घेरे में आता है।
नैतिक और पारिस्थितिक सवाल
इसी तरह, पर्यावरणविदों की चिंता और भी गहरी है। उनका कहना है कि भले ही यह तकनीक संकटग्रस्त प्रजातियों को बचाने में मदद कर सकती है, फिर भी, इससे पारिस्थितिक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है।
वास्तव में, वर्तमान में इन पिल्लों को एक सुरक्षित और नियंत्रित बाड़े में रखा गया है, जहाँ उनकी लगातार निगरानी और देखभाल की जा रही है। लेकिन, अगर भविष्य में इन्हें जंगलों में छोड़ा गया, तो उनकी प्राकृतिक परिस्थितियों से अनुकूलता पर सवाल उठेंगे।
निष्कर्ष
अंततः, डायर वुल्फ़ की यह कथित वापसी विज्ञान की एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखी जा रही है। लेकिन साथ ही, यह कई नैतिक, वैज्ञानिक और पारिस्थितिक प्रश्न भी खड़े करती है। क्या हम वाकई जीवन को दोबारा रचने का अधिकार रखते हैं? या यह सिर्फ मानव की अति महत्वाकांक्षा का प्रतीक बन जाएगा?
इसलिए, आने वाले समय में यह देखना रोचक होगा कि क्या यह तकनीक प्राकृतिक संरक्षण का नया युग साबित होगी या नैतिक उथल-पुथल का कारण बनेगी। निस्संदेह, यह बहस अब और गहराएगी।