संवाददाता.नई दिल्ली. विहिप का मानना है कि हिंदुओं पर हमले आतंकवादी कार्यवाही हैं। हर हमलावर और उसको शह देने वालों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अंतर्गत कार्यवाही होनी चाहिए । अल-जवाहरी के वीडियो से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह एक अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र है। विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ सुरेन्द्र कुमार जैन ने कहा है कि रामनवमी के पावन कार्यक्रमों पर मुस्लिम समाज द्वारा किए जा रहे हिंसक हमलों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है।उड़ीसा, गोवा अपेक्षाकृत शांत प्रदेश माने जाते हैं। वहां भी रामोत्सव पर हमला घोर चिंता का विषय है।
प्रेस वार्ता में श्री जैन ने कहा कि पिछले दिनों JNU समेत 20 से अधिक स्थानों पर रामनवमी के आयोजनों पर हिंसक हमले किए गए। घरों की छतों से पत्थर, ईटें, पेट्रोल बम, तेजाब की बोतलें आदि फेंकी गये। अवैध हथियार लहराते हुए जिहादियों की भीड़ ने हिंदुओं पर हमले किए। महिलाओं की इज्जत लूटने का प्रयास किया गया, मंदिरों को तोड़ा गया तथा पुलिसकर्मियों पर भी जान लेवा हमले किए गए। भारत के एक आतंकी संगठन पीएफआई की भूमिका अब स्पष्ट रूप से सामने आ रही है। इन हिंसक हमलों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर के भारत विरोधी टूल किट गैंग का आर्थिक, बौद्धिक व राजनीतिक समर्थन मिल रहा है।
उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से भारत के अधिकांश मुस्लिम नेता और कांग्रेस तथा उनके कोख से निकली हर पार्टी इन हमलावरों के साथ खड़ी हो गई है। टीवी स्टूडियो से लेकर सड़क और अदालत तक हर जगह यह टूल किट गैंग इन जिहादियों की रक्षा में लामबंद हो गया है। सोशल मीडिया पर भी मुसलमानों को भड़काने वाले प्रयास विदेशों में रहने वाले कई धनवान जेहादी कर रहे हैं। पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक बड़ी सक्रियता इन जिहादी तत्वों के द्वारा दिखाई दी। ये भारत विरोधी वातावरण बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे। यह तथ्य सामने आया कि इसमें भारत से बाहर के लोगों का 87% सहयोग है। हमारा यह आरोप सिद्ध हो जाता है कि यह एक अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र के अंतर्गत किया जा रहा है। ऐसा लगता है कि वे भारत में गृह युद्ध की स्थिति निर्माण करना चाहते हैं।
डॉ जैन ने कहा कि यह बर्बर हिंसा रमजान के कथित पवित्र महीने में हो रही है। क्या जिहादियों की पवित्रता का अर्थ हिंदुओं का नरसंहार है, महिलाओं पर बलात्कार के प्रयास, मंदिरों को ध्वस्त करना, मकानों व दुकानों को लूट कर आग लगा देना, पुलिसकर्मियों पर गोलियां चलाना दलितों के घरों को आग लगाकर उनकी महिलाओं के साथ अपमान करना है? उन्होंने कहा कि एक बात स्पष्ट हो गई है की, “मीम और भीम” के नारे लगाने वाले भी पीएफआई के ही एजेंट है। अनुसूचित समाज का वर्ग हमेशा से जिहादियों का मुकाबला करने में सबसे आगे रहता है। इनके साथ दोस्ती का नारा दलितों के जानमाल पर एक घटिया राजनीति करने का प्रयास है। अब उनका घिनौना चेहरा भी उजागर हो गया है। उनके मुंह से इन दरिंदों के विरोध लिए एक शब्द भी निकला?
इन घटनाओं से कुछ आधारभूत प्रश्न खड़े होते हैं :-
1. मुस्लिम समाज की हठधर्मिता के कारण ही धर्म के आधार पर भारत का विभाजन हुआ था। स्वतंत्रता के बाद भी ये जिहादी हिंदुओं पर हमला करने का कोई ना कोई बहाना ढूंढ लेते हैं। CAA का भारतीय मुस्लिम समाज से कोई लेना-देना नहीं था लेकिन शाहीन बाग, शिव विहार जैसे पचासियों स्थानों पर इन्होंने कानून व्यवस्था को ध्वस्त किया और हिंदुओं पर हमले किए । हिजाब का विषय एक विद्यालय के गणवेश का विषय था। परंतु जिस प्रकार निर्णय देने वाले न्यायाधीशों को धमकी दी गई और हर्षा की निर्मम हत्या की गई उससे इनकी मानसिकता स्पष्ट हो जाती है। कुछ लोग कहते हैं कि जिनको भारत में हिंदुओं से प्यार था वही भारत में रह गए। यदि यह सत्य है तो ये घटनाएं क्यों होती हैं? क्यों अभी तक कोई बड़ा मुस्लिम नेता इन हिंसक घटनाओं या राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का विरोध नहीं करता? मुर्तजा जैसे आतंकी के साथ ये सब क्यों खड़े हुए दिखाई देते हैं?
2. एक बात बार-बार कही जाती है कि भड़काऊ नारे लगाए गए। कौन से भड़काऊ नारे? ‘जय श्री राम’, व ‘भारत माता की जय’ भड़काऊ नारा कैसे हो सकते हैं? इसके विपरीत कट्टरपंथियों के कई कार्यक्रमों में ‘सर धड़ से जुदा होगा’ या ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ नारे लगाना क्या भड़काऊ नारे नहीं है? विश्व इतिहास का सबसे भड़काऊ नारा है तो “ला इलाह इल्लल्लाह, मोहम्मद उर रसूल अल्लाह” है। क्या दिन में 5 बार अजान के समय ‘केवल अल्लाह की पूजा की जा सकती है किसी और की नहीं’ यह कहकर वे हिंदुओं को भड़काने का प्रयास नहीं करते? यदि भड़काऊ नारे के नाम पर ही रामनवमी पर हमलों को ये जायज ठहराते हैं तो इनके नारों के विरोध में हिंदुओं को क्या करना चाहिए?
3. इस्लाम से सबसे अधिक पीड़ित समाज भारत के मुसलमान हैं। 85% मुसलमानों के पूर्वज हिंदू थे जिनको जबरन मूसलमान बनाया गया। उनके मन में इन मुस्लिम आक्रमणकारियों के प्रति श्रद्धा नहीं नफरत होनी चाहिए। ऐसा लगता है कि भारत का मुसलमान स्टॉकहोम सिंड्रोम से पीड़ित है। इस सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति अपने ऊपर अत्याचार करने वाले से प्यार करने लग जाता है और उसके मार्ग पर चलने लग जाता है। लेकिन सौभाग्य से एक दूसरा वर्ग भी है जो दारा शिकोह, रसखान और एपीजे अब्दुल कलाम को अपना आदर्श मानता है। इस दूसरे देश भक्त समाज की आवाज दब रही है। दुर्भाग्य से जो आक्रमणकारियों के साथ खड़ा है वही नेतृत्व करता हुआ दिखाई देता है। इसलिए रजाकारों के मानस पुत्र सहित सभी मुस्लिम नेता आज मुस्लिम समाज को भड़काने का प्रयास करते हैं।
4. कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति के कारण ही भारत का विभाजन हुआ था। दुर्भाग्य से कांग्रेस की यह नीति आजादी के बाद भी नहीं बदली। स्वतंत्र भारत में आतंकवाद के सभी स्वरूपों के पीछे कांग्रेस और इनके कोख से जन्म लेने वाली सभी तथाकथित सेकुलर पार्टियां हैं। यह तथ्य है कि मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार के संरक्षण में ही SIMI फली फूली थी और आज भी इन्होंने एक गलत तथ्य को ट्वीट करके मध्य प्रदेश को दंगों की आग में झोंकने का असफल प्रयास किया है। राजस्थान में दंगाइयों को पकड़ने की जगह गहलोत सरकार ने जिस प्रकार सभी धार्मिक शोभा यात्राओं पर प्रतिबंध लगा दिया है वह इसी मानसिकता को दर्शाता है। रामनवमी, महावीर जयंती, गुरु तेग बहादुर आदि की शोभायात्राओं के ऊपर तो पाबंदी लग गई लेकिन यह निश्चित है मोहर्रम आने तक यह पाबंदी हटा दी जायेगी। हिंदुओं की शोभायात्रा पर पाबंदी लगाने वाली कांग्रेस की शव यात्रा शीघ्र ही निकालेगी यह साफ दिखाई दे रहा है ।
5. यह विचारणीय तथ्य है कि दंगे वहीं क्यों होते हैं जहां हिंदू अल्पसंख्या में होता है। विश्व हिंदू परिषद गंभीरता से चाहती है कि हमें वह दिन नहीं आने देना चाहिए कि हिंदू इन दंगाइयों को उनकी ही भाषा में हिंदू बहुल क्षेत्रों में जवाब देने लगे। इसकी जिम्मेदारी भारत के सभी प्रबुद्ध लोगों और राजनीतिक दलों की ही है। यदि ऐसा हुआ तो क्या परिणाम होगा इसका विचार आसानी से किया जा सकता है। लेकिन एक तथ्य स्मरण रखना चाहिए जहां हिंदू अल्पसंख्यक है क्या वह वहां हमेशा पिटता रहा है या पिटता रहेगा? इतिहास बता रहा है अब यह सत्य नहीं है। मुजफ्फरनगर, शामली, शिव विहार आदि कई स्थानों के अनुभव जेहादी नेता भूले नहीं होंगे।
विश्व हिंदू परिषद देश की सभी सरकारों और राजनीतिक दलों से अपील करती कि वे अपने राजनीतिक स्वार्थ को छोड़कर देशहित का विचार करें। देश को विकामार्ग पर ले जाने के अपने दायित्व को स्वीकार करें। उन्हें इतिहास का ध्यान रखना चाहिए कि मोहम्मद बिन कासिम का साथ देने वाले जयचंद का क्या हश्र हुआ था। अपने स्वार्थ के लिए देश हित की बली चढ़ाने वालों का हश्र यही होता है।
विहिप हिन्दू समाज का भी आह्वान करती है कि ‘पलायन नहीं पराक्रम’ हिन्दू का संकल्प रहा है। जहाँ की सरकारें दंगाईयों पर कठोर कार्यवाही कर रही हैं, उनका साथ दें और जहाँ वे दंगाइयों के साथ हैं, वहाँ अपने सामर्थ्य को जागृत करें।हमें दंगाइयों से भयभीत न होते हुए स्वाभिमान पूर्ण जीवन जीने की परिस्थितियों का निर्माण करना है। दंगाइयों को स्मरण रखना चाहिए, यह 1946 नहीं है। संकल्प और शौर्यवान हिंदू उनके षड्यंत्रों को सफल नहीं होने देगा।