संवाददाता.पटना.पीपल, नीम, तुलसी अभियान के संस्थापक डॉ धर्मेंद्र कुमार ने पटना में विकास की आड़ में हो रहे पर्यावरण दोहन के मुद्दे पर सवाल उठाते हुए कहा कि पटना गया रोड पर अंतरराज्यीय बस अड्डा, सड़क चौड़ीकरण और मेट्रो निर्माण के कारण बहुत से पेड़ों को काट दिया गया या उन्हें विस्थापित कर दिया गया। किन्तु उन सभी पुराने विस्थापित वृक्षों में शायद ही कोई जीवित रहे।
डॉ धर्मेन्द्र ने केद्र और राज्य सरकार और आम नागरिकों का वनों के वैज्ञानिक प्रबंधन पर ध्यान आकृष्ट कराया। उन्होंने क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला के उस आलेख का दृष्टांत दिया जिसमें यह कहा गया है कि हर वर्ष 200 वर्ग किलोमीटर जंगल कम हो रहें हैं।
डाँ कुमार ने कहा कि अगर आधुनिकता आवश्यक है तो वृक्ष विस्थापन हेतु आधुनिक संयंत्र/यंत्रों का इस्तेमाल होना चाहिए जो वृक्षों को जड़ सहित निकालकर दूसरे जगह लगा सके। चाहे आर ब्लाक सड़क निर्माण में पेड़ों की कटाई हो, या महुली एलिवेटेड रोड में 500 से अधिक पेड़ों के काटे जाने का प्रस्ताव हो इन सब के निदान हेतु हमें विकल्पों पर विचार करना होगा।
कुमार ने कहा कि बिहार सरकार के तत्वावधान में लगाए गए 3.91 करोड़ पौधे हेतु सरकार की तारीफ करते हुए वन क्षेत्रों के महत्व पर प्रकाश डाला। सरकार मे मांग किया पौधरोपण का शोशल औरडिट भी होनी चाहिए ।अभी तक वन विभाग के द्वारा जो वन क्षेत्र का प्रतिशत डाटा जो पेश किया जा रहा वह उतरी बिहार का ही है अगर उतरी बिहार को छाट कर दक्षिणी बिहार का वन क्षेत्र 0प्रतिशत ही है ।
उन्होंने कहा कि विभिन्न सामाजिक एवं पर्यावरण संगठनों के सम्मानित प्रतिनिधि भी एक सुर में जलवायु परिवर्तन, कहीं अधिक बाढ़ तो कहीं सुखाड़, कहीं भूस्खलन तो कहीं भूकम्प आदि नुकसान हेतु पृथ्वी से हर वर्ष फुटबॉल के 27 मैदानों के बराबर जंगलों के खत्म होने को जिम्मेदार माना। राष्ट्रीय वन नीति की पुनर्निरीक्षण की मांग करते हेतु स्थानीय समुदाय की भागीदारी के बिना संभव नहीं है धरती की श्रृंगार।