संवाददाता.रांची.आजादी के पूर्व रांची में नही होता था रावण दहन का कार्यक्रम.क्योंकि आदिवासियों की एक बिरादरी असुर जनजाति के लोग रावण को अपनी बिरादरी का मानकर उन्हें अपना आदर्श पुरूष मानते आए हैं.यही कारण है कि 2008 में जब शिबू सोरेन मुख्यमंत्री थे तब रांची में नहीं हुआ था रावण दहन का सार्वजनिक कार्यक्रम.
इस वर्ष भी आदिवासी मंच ने विजयादशमी को रावण का शहादत दिवस के रूप में मनाया.आदिवासी खासकर असुर जनजाति बाहुल क्षेत्रों में रावण का शहादत दिवस मनाने की परपंरा चली आ रही है.
रांची में भी 1948 के पूर्व रावण दहन नहीं होता था.बताते हैं कि भारत विभाजन के बाद विभाजन के शिकार पाकिस्तान से कुछ कबिलाई परिवार रांची आए और यहीं के होकर रह गए.इन्हीं 10-12 पंजाबी हिंदू बिरादरी परिवार के लोगों ने पहली बार 1948 में 12 फीट के रावण के पुतले को जलाया था.इसके बाद ही रांची में रावण दहन का सिलसिला चला और भव्य आकार व आयोजन बनता चला गया.