चारा घोटाला में फंसने के बाद जनता दल में राजद का विलय चाहते थे लालू

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प्रमोद दत्त

                विगत लोकसभा चुनाव में भारी पराजय के बाद जनता परिवार के एकीकरण को लेकर भले ही नीतीश कुमीर ने ज्यादा बेचैनी दिखाई लेकिन बिहार की राजनीति में एक समय ऐसा भी आया था जब लालू प्रसाद अपनी पार्टी राजद को जनता दल में विलय को लेकर बेचैन हुए थे.

                1997 में जब चारा घोटालों के आरोप में लालू प्रसाद बंद हुए थे तब अपनी सरकार (राबड़ी सरकार) को बचाए रखने के लिए उन्होंने तत्कालीन केंद्रीय राज्य मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह और राजद के तत्कालीन कार्यकारी अध्यक्ष रंजन प्रसाद यादव के माध्यम से जनता दल के शीर्ष नेतृत्व के सामने विलय का प्रस्ताव भिजवाया था. इसके लिए शर्त सिर्फ एक ही थी कि सरकार तलाने के लिए राबड़ी देवी को राज्यमंत्री के रूप में स्वीकारा जाए बदले में लालू प्रसाद, जद के तत्कालीन अध्यक्ष शरद यादव का नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार थे.

                1995 विधानसभा चुनाव जनता दल ( लालू प्रसाद) की भारी जीत के बाद जब 1996 में चारा घोटाला उजागर हुआ था तब लालू प्रसाद की लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से गिरा था. 1996 लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद को भारी झटका लगा था. भाजपा-समता ने राज्य की 54 सीटों में 24 सीटों पर कब्जा जमाया था. इस लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद की राजद को सौ विधानसभा क्षेत्रों में भी बढ़त नहीं मिली था. एक तरफ चुनाव में गिरता ग्राफ और दूसरी ओर ‘चारा घोटाले’ की जांच की लटकी तलवार को देखते हुए जिस जनता दल को तोड़कर लालू प्रसाद ने राजद बनाया था, उसी जनता दल में राजद के विलय का प्रस्ताव उन्होंने भिजवाया था. लेकिन तब के प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा सहित रामविलास पासवान जैसे नेताओं का मानना था कि दागदार लालू प्रसाद को पुनः दल में वापस लाने से न सिर्फ दल की छवि खराब होगी बल्कि जोड़-तोड़ एवं गुटबाजी दल के अंदर तेज हो जाएगी. हालांकि लालू प्रसाद के समर्थक एस.आर बोम्मई , आरएल जलप्पा, जयपाल रेड्डी जैसे नेता विलय के पक्ष में यह तर्क दे रहै थे कि भाजपा की बढ़ती ताकत को रोकने के लिए लालू प्रसाद की वापसी जरूरी है.

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