खामोश रहे भाजपा के बिंदास शत्रु

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 (-मुकेश महान)…..

  khamosh rahe bhajpa ke shatruभाजपा के ‘शत्रु’ मतलब शत्रुघ्न सिन्हा कहां रहे पूरे चुनाव भर. नेताओं का राजनीतिक उत्सव चुनाव वो भी  गृह प्रदेश में और ऊपर से पार्टी ने स्टार प्रचारक का तमगा भी दे दिया हो, फिर कौन होगा जो पूरे चुनावी दृश्य से अदृश्य हो. लेकिन ऐसा ही कुछ हुआ है भाजपा के शत्रु के साथ. शत्रुघ्न सिन्हा भाजपा के वरिष्ठ नेता और बिहार चुनाव के लिए स्टार प्रचारक के लिस्ट में रहे. बिहार का चुनाव समाप्त हो गया है. लेकिन शत्रुघ्न सिन्हा नहीं दिखे कीं भी किसी भी मंच पर.

यह एक बड़ा सवाल है. खास कर भाजपा में आंतरिक स्तर पर. प्रदेश स्तर पर इसे लेकर दबी जुबान में चर्चा भी होती है, लेकिन चाह कर भी कोई खुलकर, यह सवाल नहीं उठा पा रहा है. चाहकर भी कोई उम्मीदवार अपने प्रिय नेता-अभिनेता और स्टार प्रचारक को बुलाने की हिम्मत भी नहीं दिखा पाया. तो क्या भाजपा को खासकर बिहार भाजपा को शत्रुघ्न सिन्हा की अब जरूरत नहीं रह गई है. स्टारजम से लबरेज शत्रुघ्न सिन्हा कभी देश भर में भाजापा के लिए भीड़ जुटाते थे और लोगों को अपने अंदाज में पार्टी से जोड़ते थे तो अपने दमदार संवादो से विपक्षियों को ‘खामोश’ करते थे. वही शत्रुघ्न सिन्हा से भाजपा कन्नी काटती नजर आ रही है. बिहार की जनता में यह सवाल भी उठने लगा है कि जब हेमा मालिनी को इस चुनाव में तरजीह दी जा सकती है तो शत्रु भैया को क्यो नहीं? अगर चुनावी बतकही की बात की जाए तो चौक-चौराहों पर कुछ इस कदर की चर्चा चकल्लस में रही कि चुनाव से पहले अगर भाजपा बिहारी नेता बिहारी भैया की ये दुर्गति कर सकती है तो चुनाव जीतने के बाद वह औऱ भी नेताओं को संट करेगी औऱ बाहर से किसी अन्य को बिहार के मत्थे थोप देगी. दरअसल भाजपा चुनाव समिति का रवैया किसी भी बिहारी नेता या जनता को पच नहीं रहा है.

ऐसा क्यों हो रहा है यह शोचनीय है? इसे लेकर चर्चाएं भी जोर-शोर से शुरू हो चुकी है. और सच तो यह है कि इसका सही जवाब भाजपा के शीर्ष नेताओं के पास ही मिलेगा लेकिन इस पर कोई भी नेता कुछ भी बोलने को तैयार नहीं. हालांकि आलोचकों और समीक्षकों ने इसे लेकर अपने-अपने तर्क गढ़ लिए हैं. ऐसा ही एक तर्क है. बिहार भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेता प्रदेश भाजपा में कायस्थ विरोधी है. ऐसे में शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने बल-बूते और अपने स्टारडम के दम पर एक खास मुकाम तो हासिल कर ली है लेकिन पार्टी का जितना साथ उन्हें मिलना चाहिए था वो मिला नहीं. शत्रुघ्न समर्थक समीक्षकों का तो यह भी दावा है कि शत्रुघ्न सिन्हा जब अपने स्टारडम के चरम पर थे तब उन्हें मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट कर चुनाव लड़ना चाहिए था. लेकिन प्रदेश भाजपा के कुछ खास नेता जो पार्टी का हित नहीं देखते बल्कि सिर्फ अपना हित ही साधते रहे हैं कभी ऐसा होने नहीं दिया. ऐसे में कायस्थ समर्थक वोटरों का यह भी कहना है कि प्रदेश भाजपा ने नवीन किशोर जैसो तेज-तर्रार नेताओं की जो दुर्गति की है वह अभी भुलाया नहीं जा सका है. अब प्रदेश भाजपा ने शत्रुघ्न सिन्हा को टारगेट किया है संट करने के लिए. पूर्व भाजपा नेता रणवीर नंदन को भी भाजपा ने उपेक्षित किया नतीजतन उन्होंने जदयू का दामन थाम लिया. वरिष्ठ नेता आर के सिन्हा को भी भाजपा ने काफी इस्तेमाल के बाद पारितोष दिया. कायस्थ राजनीति की समझ रखने वाले विश्लेषकों का यह भी मानना है कि कायस्थ नेता भी एक-दूसरे के खिलाफ सक्रिय होते हैं नतीजा है कि कभी यह तो कभी वो उपेक्षा के शिकार हो रहे हैं. आर के सिन्हा और रविशंकर जैसे वरिष्ठ कायस्थ नेता भी कभी पटना साहिब से लोकसभा टिकट के उम्मीदवार थे.  लेकिन तब बाजी मार ले गये थे शत्रुध्न सिन्हा. लेकिन अब बाजी पलट गई है इसलिए संटिंग का शिकार हो रहे हैं शत्रुघ्न सिन्हा.

राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि अटल-आडवाणी का युग भाजपा से जा चुका है. साथ ही इनके युग में स्टार रहे नेताओं के युग भी धीरे-धीरे जा रहे हैं. शत्रुघ्न सिन्हा भी भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी के निकट के माने जाते रहे हैं. ऐसे में भाजपा के नये ‘शहंशाह’ इन्हें बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं औऱ स्वाभाविक तौर पर भाजपा के मुख्य धाराओं से ये दरकिनार किये जा रहे हैं. चर्चा तो यहां तक है रि प्रदेश भाजपा में स्टारडम या आज भी भीड़ जुटाने के मामले सबसे बड़े नेता शत्रुघ्न सिन्हा ही है. ऐसे में पार्टी में ही ढेर सारे उनके राजनीतिक विरोधी भी हैं जिनका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ सकता है.

इन सब के बावजूद शत्रुघ्न सिन्हा की आलोचना चुनावी चकल्लस में जारी रही. ऐसे में आलोचकों का तर्क है कि शत्रुघ्न भैया इतने सालों से राजनीति मे रहे हैं. लेकिन राजनीति का र अक्षर भी अभी तक सीख नहीं पाये हैं. उनके बिंदास बोल ही कई बार उनके लिए मुसीबत बन जाते हैं.कभी उनके बोल ऐसे होते हैं जो आलाकमान को अच्छे नहीं लगते. तो कभी उनके बोल पार्टी नीति के खिलाफ लगते हैं. कभी धुर विरोधी नीतीश को वह बेस्ट सीएम बताते हैं तो कभी उन्हें अपना पारिवारिक मित्र. यही हालात लालू प्रसाद यादव को लेकर भी जब-तब शत्रुघ्न सिन्हा के बयान से बनती है. अभी हाल ही में नीतीश कुमार को लेकर भी शत्रुघ्न सिन्हा का कुछ ऐसा ही बयान आया. नतीजतन भाजपा नेतृत्व उनसे नाराज हो गया. तब कार्रवाई की बात भी उठने लगी थी, लेकिन शायद बिहार चुनाव को देखते हुए शीर्ष नेतृत्व ने चुप्पी साध ली. लेकिन दूसरी ओर नतीजा यह रहा है कि शत्रुघ्न सिन्हा बिहार मे चल रहे लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व से ही गायब हो गये. इसका खामियाजा भी भाजपा को भाजपा को भुगतना पड़ेगा या नहीं कहना अभी जल्दबाजी होगी.

 

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सन् 1987 से पत्रकारिता, 1992 से विभिन्न अखबारों एवं चैनलों के साथ विभिन्न पदों पर कार्यानुभव. संस्थान की शुरूआत करने के लिए विशेष पहचान. डीडी मेट्रो, हमार टीवी, साधना न्यूज बिहार-झारखंड, प्रज्ञा चैनल (धार्मिक) के लिए कार्यक्रम बनाने/निर्देशन का अनुभव. ईटीवी बिहार के चर्चित कार्यक्रम ‘सुनो पाटलिपुत्र कैसे बदले बिहार’ का स्क्रिप्ट हेड. समसमायिक और राजनीतिक विषयों के साथ-साथ कला, संस्कृति और ज्योतिषीय विषयों पर समान अधिकार.

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