सरल हिंदी,लोकप्रिय हिंदी

2511
0
SHARE

(प्रमोद दत्त) ……………

saral hindi lokpriye hindiअगर मुझे हिंदी नहीं आती  तो मेरा क्या होता.मैं लोगों तक कैसे पहुंचता.किसी भाषा की ताकत क्या होती है, इसका मुझे अंदाजा है.“ 10 वें विश्व हिंदी सम्मेलन के उदघाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस वक्तव्य से कांग्रेस की आंखे खुलनी चाहिए.हिंदी प्रदेशों में  कांग्रेस से जनता की बढती दूरी का कारण है, कांग्रेस के शीर्ष नेताओं का हिंदी से परहेज करना.राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनियां गांधी से लेकर सचिन पायलट व जीतन प्रसाद जैसे युवा कांग्रेसियों की स्थिति एक जैसी है.विचार विमर्श से पत्राचार तक में अंग्रेजी पर फोकस ज्यादा है.पिछले दस वर्षों के शासनकाल के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मौन धारण किए रहे तो सोनियां गांधी हिंदी प्रदेशों में अपनी टूटी फूटी हिंदी में जनता को संबोधित करती रहीं.एक ओर विदेशों में जाकर नरेन्द्र मोदी ने हिंदी का मान बढाया तो दूसरी ओर अंग्रेजी प्रेम दिखाकर कांग्रेसी अपनी शान समझते रहे.

हिंदी दिवस के पूर्व भोपाल में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिंदी की आन-बान-शान के लिए अपने मन की बातें की.हिंदी का अस्तित्व बचाए रखने और इसे विस्तारित करने के लिए अन्य भारतीय भाषाओं (तेलगू-तमिल) के साथ हिंदी का संबंध जोड़ने की वकालत की.कहा कि तमिल व हिंदी के बीच वर्कशॉप कर दोनों भाषाओं के बीच तालमेल व रिश्ते बनाने होंगे.दरअसल हिंदी को दक्षिण भारतीय या अन्य भाषाओं के साथ संबंध बनाने पर कभी आपत्ति नहीं रही है.आपत्ति दूसरे को जरूर रही है.हिंदी साहित्यकारों ने उर्दू शब्दों का प्रयोग कर उर्दू को गले लगाया.हिंदी को सरल और लय में लाने के लिए हिंदी के कठिन शब्दों के स्थान पर उर्दू शब्दों का प्रयोग किया.लेकिन उर्दूवालों के लिए हिंदी अछूत बनी रही.उर्दू लेखन में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग तो धड़ल्ले से किया गया परन्तु हिंदी से परहेज किया जाता रहा.

बदलते समय के अनुसार आज हिंदी लेखन में उर्दू के साथ साथ अंग्रेजी शब्दों के प्रयोग खूब हो रहे हैं.हिंदी को सरल बनाने और वर्तमान युवा पीढियों के बीच,जो अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा ग्रहण के कारण हिंदी से दूर भाग रहे हैं,हिंदी को लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग किया जाने लगा है.हालांकि हिंदी के साहित्यकारों को इस मिलावट पर आपत्ति है. लेकिन मेरा मानना है कि साहित्य और सामान्य हिंदी को अलग अलग नजरिए से देखना होगा.हिंदी को आमजन और युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाए रखने के लिए सरल हिंदी को स्वीकार करना होगा.

SHARE
Previous articleचुनावी ताल ठोकते वामपंथी
Next articleसोशल मीडिया की ताकत
सन् 1980 से पत्रकारिता. 1985 से विभिन्न अखबारों एवं पत्रिकाओं में विभिन्न पदों पर कार्यानुभव. बहुचर्चित चारा घोटाला सहित कई घोटाला पर एक्सक्लुसिव रिपोर्ट, चारा घोटाला उजागर करने का विशेष श्रेय. ‘राजनीति गॉसिप’ और ‘दरबारनामा’ कॉलम से विशेष पहचान. ईटीवी बिहार के चर्चित कार्यक्रम ‘सुनो पाटलिपुत्र कैसे बदले बिहार’, साधना न्यूज और हमार टीवी के टीआरपी ओरियेंटेड कार्यक्रम ‘पड़ताल - कितना बदला बिहार’ के रिसर्च हेड और विभिन्न चैनलों के लिए पॉलिटिकल पैनलिस्ट. संपर्क – 09431033460

LEAVE A REPLY