आरक्षण पर सियासत

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Hindu nationalist Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS), or the National Volunteers Force chief Mohan Bhagwat attends a meeting of their organization in Bangalore, India, Friday, March 7, 2014. The three day annual top level meeting of RSS, the parent organization of India's main political opposition Bharatiya Janta Party (BJP) started Friday. (AP Photo/Aijaz Rahi)

Hindu nationalist Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS), or the National Volunteers Force chief Mohan Bhagwat attends a meeting of their organization in Bangalore, India, Friday, March 7, 2014. The three day annual top level meeting of RSS, the parent organization of India's main political opposition Bharatiya Janta Party (BJP) started Friday. (AP Photo/Aijaz Rahi)

रिंकू पाण्डेय,पटना. आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर से गरमाने लगा है. …और यह पहली बार भी नहीं है कि आरक्षण का जिन्न अचानक से बोतल से बाहर निकल आया है. ऐन चुनाव के वक्त तो ऐसा होता ही है इस बार भी बिहार विधान सभा चुनाव के ठीक पहले आरक्षण पर जमकर कर सियासत होने लगी है . सत्ता पाने की होड़ में नेता यह भी भुलने लग जाते हैं कि देशहित क्या है. बस उनकी नजर में अपना और अपनी पार्टी का हित ही होता है.यही वजह है कि ऐन चुनाव के पहले आरक्षण मुद्दा बन जाता है और नेता इसे अपने हित में इस्तेमाल करने लगते हैं .न तो इसपर कभी सार्थक बहस की जरुरत महसूस की जाती है ऩ ही आज के परिवेश में इसकी समीक्षा की जरुरत महसूस होती है.यही कारण है कि जब  आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण नीति की समीक्षा की बात कही तो महागठबंधन के नेताओं ने खासकर लालू प्रसाद और नीतीश कुमार को ने इसे  चुनावी मुद्दा बना लिया . दूसरी और मोहन भागवत के विचार से परे आरक्षण पर  एनडीए के नेताओं को लगातार सफाई देनी पड़ रही है.लालू प्रसाद  भी आरक्षण को लेकर आक्रामक तेवर में आ गए हैं. नीतीश कुमार भी इससे अछुते नहीं रहे वे भी विकास का मॉडल भूल कर अब आरक्षण की राग अलापने लगे हैं.

 सच कहा जाए तो बिहार के सियासी घमसान में आरक्षण एक मह्त्वपूर्ण हथियार बन गया है. अब जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव भी खुलकर इस हथियार को चुनावी फिज़ा में भांजने लगे हैं. शरद यादव ने एनडीए और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत पर निशाना साधते हुए कहा कि जब तक देश में जाति व्यवस्था कायम हैमौजूदा आरक्षण नीति की कोई समीक्षा नहीं कर सकता और न ही उसे हटा सकता है. यहां यह सोचनीय है कि समीक्षा कभी भी किसी भी चीज की की जा सकती है, फिर समीक्षा का विरोध क्यों. हां, आरक्षण का विरोध वाजिब हो सकता है लेकिन समीक्षा का विरोध कितना वाजिब है यह जनता ही तय करेगी.  

जाहिर है कि लालू ,नीतीश या शरद यादव द्वारा किया जा रहा यह विरोध का सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए है. पार्टी अध्यक्ष शरद यादव ने भाजपा के आरक्षण नीति की समीक्षा के संबंध में भागवत की टिप्पणी से खुद को अलग करने के प्रयासों को खारिज कर दिया और याद दिलाया कि भगवा दल ने 1990 में मंडल के विरोध में कमंडल निकाला था. शरद यादव ने कहा कि जब मंडल रिपोर्ट लागू हुयी तो बीजेपी ने कमंडल निकाला. वीपी सिंह की सरकार ने नौकरियों और शिक्षा में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण मुहैया कराने वाली मंडल आयोग रिपोर्ट को लागू किए जाने की घोषणा के तुरंत बाद पार्टी ने राम मंदिर मुद्दे पर रथयात्रा निकाली. शरद यादव ने कहा कि यह कुछ नहीं बल्कि आरक्षण का विरोध करने का ढका छिपा प्रयास था. अब वे राजनीतिक वजहों से भागवत के बयान से अपने को अलग कर रहे हैं. लेकिन आरक्षण का विरोध भाजपा का इतिहास रहा है.

शरद यादव ने कहा कि यह भागवत थे, जिन्होंने आरक्षण की समीक्षा की बात कीजिसके बारे में पिछले 68 साल से शीर्ष राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी नहीं सोचा. उन्होंने आग में घी डालने का प्रयास किया.

शरद यादव की यह बात सही है कि आरक्षण का मुद्दा एक संवेदनशील मुद्दा है और भागवत के बयान के बाद आरक्षित वर्गों के लोगों में बेचैनी है.लेकिन शरद यादव शायद यह भूल रहे हैं कि समीक्षा के बाद इन बेचैन लोगों के लिए शायद कुछ बेहतर भी हो सकता है.  उन्होंने कहा कि जाति एक वास्तविकता है. यह कहना दिखावा है कि कोई जाति नहीं है जब राजनीतिक दलों द्वारा खास जातियों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए टिकटों का वितरण किया जाता है. उन्होंने आरोप लगाया कि देश के गरीबों की भावनाओं को भड़काने के लिए भाजपा आरक्षण के सुलझे हुए मुद्दे को उठाने से अपने को नहीं रोक सकी. उन्होंने कहा कि जबतक भाजपा आरक्षण नीति पर चर्चा को नहीं रोकती अन्य जातियां आरक्षण के लिए आंदोलन करती रहेंगीखासकर हर चुनाव के पहले. लेकिन शरद यादव इस पूरे बयान में आरक्षण के समाधान की चिंता नही दिखती .

दरअसल अब यह जरुरी हो गया है कि कम से कम इसकी समीक्षा हो ही कि  आरक्षण  की व्यवस्था जिनके लिए है उन्हें इसका लाभ कितना मिल पा रहा है या मिल भी पा रहा है या नही .यह भी देखने की जरुरत है कि ऐसी कोई नई व्यवस्था भी हो सकती जो मौजूदा आरक्षण से बेहतर हो और झरुरतमंदों तक यह बेहतर और मुकम्मल तरीके पहुंच सके .और यह सब तभी हो सकता है जब मौजूदा आरक्षण व्यव्सथा की इमानदारी से समीक्षा हो, खासकर जाति हित और पार्टी हित से परे.  

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